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  • मेरे पैर थक चुके हैं बाबुल
    सौ गज के घर में घूमते-घूमते
    एक कमरे से दूसरे कमरे के बीच की दुनिया
    मुझे समेट रही है
    हर काम एक दीवार से पहले
    खत्म हो जाता है
    अब साँझ चूल्हे के पास नहीं होती
    अब ना तो वो हंसी ठहाके हैं
    ना वो खेल तमाशे हैं
    मैं फिर गाँव लौट आना चाहती हूँ
    शहर के आजीवन कारावास से अब मुक्ति चाहती हूँ।
    "मोरनी"
    मेरे पैर थक चुके हैं बाबुल सौ गज के घर में घूमते-घूमते एक कमरे से दूसरे कमरे के बीच की दुनिया मुझे समेट रही है हर काम एक दीवार से पहले खत्म हो जाता है अब साँझ चूल्हे के पास नहीं होती अब ना तो वो हंसी ठहाके हैं ना वो खेल तमाशे हैं मैं फिर गाँव लौट आना चाहती हूँ शहर के आजीवन कारावास से अब मुक्ति चाहती हूँ। "मोरनी"
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  • एक दिन मैं समेट कर चल दूँगी
    अपनी रंग बिरंगी साड़ियां
    सब सहेजे गए चुन-चुन कर लिए दुपट्टे
    अच्छे बुरे वक्त की लिखी डायरियाँ
    सोने चाँदी के गहनें
    मन को बहलाने के लिए बनाई पेंटिंग
    लकड़ी के फ्रेम, बीस तरह की ब्रश
    रंग-बिरंगे धागे और घुंघरूं वाली लटकन
    दुनिया भर के नेलपेंट और लिपस्टिक से भरे डिब्बे
    शीशे पर चिपकी हुई बिंदिया।
    समेट कर चल दूंगी रसोई की सारी खुशबू अपनी हथेली में
    उठा कर चल पडूंगी सारी धरती अपने ही सिर
    पीतल की टोकनी के ज्यों
    अब बोलो क्या बचेगा तुम्हारा
    चार जोड़ी कपड़ों के सिवा इस घर में ?
    "मोरनी"
    एक दिन मैं समेट कर चल दूँगी अपनी रंग बिरंगी साड़ियां सब सहेजे गए चुन-चुन कर लिए दुपट्टे अच्छे बुरे वक्त की लिखी डायरियाँ सोने चाँदी के गहनें मन को बहलाने के लिए बनाई पेंटिंग लकड़ी के फ्रेम, बीस तरह की ब्रश रंग-बिरंगे धागे और घुंघरूं वाली लटकन दुनिया भर के नेलपेंट और लिपस्टिक से भरे डिब्बे शीशे पर चिपकी हुई बिंदिया। समेट कर चल दूंगी रसोई की सारी खुशबू अपनी हथेली में उठा कर चल पडूंगी सारी धरती अपने ही सिर पीतल की टोकनी के ज्यों अब बोलो क्या बचेगा तुम्हारा चार जोड़ी कपड़ों के सिवा इस घर में ? "मोरनी"
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  • रघुकुल नायक राम के साथ, करते हैं हम वीर हनुमान को प्रणाम .....
    रघुकुल नायक राम के साथ, करते हैं हम वीर हनुमान को प्रणाम .....🙏🚩🙇
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  • बाहर की दुनिया बदलती रहेगी
    दिक्कत परेशानी सब चलती रहेगी
    पर तु नदी सा ना उनके संग बह जा
    खुद को स्थिर पहाड बना
    तु खुद में ठहराव ला
    चौदह दिन बढे चांद फिर आगे घटे चांद
    तु उस चांद सा ना हो जा,
    जो अमावस में भी पूरा रहे खुद को ऐसा सूरज बना
    तु खुद में ठहराव ला
    पतझड सावन सब एक से
    तु टहनी पर ना जा
    जो सूखे में भी जिंदा रहे खुद को ऐसा बीज बना
    तु खुद में ठहराव ला
    अमृत के लिए देव लङे विष देख सब भागे
    जो उस विष को भी ग्रहण करे, खुद में ऐसे महादेव जगा
    तु खुद में ठहराव ला, तु खुद में ठहराव ला ।।
    "मोरनी"
    बाहर की दुनिया बदलती रहेगी दिक्कत परेशानी सब चलती रहेगी पर तु नदी सा ना उनके संग बह जा खुद को स्थिर पहाड बना तु खुद में ठहराव ला चौदह दिन बढे चांद फिर आगे घटे चांद तु उस चांद सा ना हो जा, जो अमावस में भी पूरा रहे खुद को ऐसा सूरज बना तु खुद में ठहराव ला पतझड सावन सब एक से तु टहनी पर ना जा जो सूखे में भी जिंदा रहे खुद को ऐसा बीज बना तु खुद में ठहराव ला अमृत के लिए देव लङे विष देख सब भागे जो उस विष को भी ग्रहण करे, खुद में ऐसे महादेव जगा तु खुद में ठहराव ला, तु खुद में ठहराव ला ।। "मोरनी"
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