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नीड़ को ज्यों लौटें खग - विहग
हर दिन ढ़लती सुरमई शाम...

समेट उलझे मोह के धागे विस्तृत सारे
बटोही..चेत अब ..जाना है निज धाम...

कर्म ही पूजा.. कर्म जब हों सभी निष्काम...
समर्पित गुण-अवगुण मेरे, तुझको मेरे राम !

व्यर्थ चिंतन तज मन मेरे, श्रद्धा का दामन थाम...
कर्ता - कारणहार वही है..तेरा तो बस नाम !
"मोरनी"
नीड़ को ज्यों लौटें खग - विहग हर दिन ढ़लती सुरमई शाम... समेट उलझे मोह के धागे विस्तृत सारे बटोही..चेत अब ..जाना है निज धाम... कर्म ही पूजा.. कर्म जब हों सभी निष्काम... समर्पित गुण-अवगुण मेरे, तुझको मेरे राम ! व्यर्थ चिंतन तज मन मेरे, श्रद्धा का दामन थाम... कर्ता - कारणहार वही है..तेरा तो बस नाम ! "मोरनी"
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