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नीड़ को ज्यों लौटें खग - विहग
हर दिन ढ़लती सुरमई शाम...

समेट उलझे मोह के धागे विस्तृत सारे
बटोही..चेत अब ..जाना है निज धाम...

कर्म ही पूजा.. कर्म जब हों सभी निष्काम...
समर्पित गुण-अवगुण मेरे, तुझको मेरे राम !

व्यर्थ चिंतन तज मन मेरे, श्रद्धा का दामन थाम...
कर्ता - कारणहार वही है..तेरा तो बस नाम !
"मोरनी"
नीड़ को ज्यों लौटें खग - विहग हर दिन ढ़लती सुरमई शाम... समेट उलझे मोह के धागे विस्तृत सारे बटोही..चेत अब ..जाना है निज धाम... कर्म ही पूजा.. कर्म जब हों सभी निष्काम... समर्पित गुण-अवगुण मेरे, तुझको मेरे राम ! व्यर्थ चिंतन तज मन मेरे, श्रद्धा का दामन थाम... कर्ता - कारणहार वही है..तेरा तो बस नाम ! "मोरनी"
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  • किते चुप रहणा बणै समाधान, किते आवाज ठाणी पङै
    किते दब ज्या पूरा मुद्दा, किते एक शब्द कहाणी बणै
    किते मुफ्त मै मिलज्या सब, किते सांसा की भी कीमत चुकाणी पङै
    किते आदमी तरसै प्यासा अर किते आंख्यां तै भी पाणी पङै।
    "मोरनी"

    किते चुप रहणा बणै समाधान, किते आवाज ठाणी पङै किते दब ज्या पूरा मुद्दा, किते एक शब्द कहाणी बणै किते मुफ्त मै मिलज्या सब, किते सांसा की भी कीमत चुकाणी पङै किते आदमी तरसै प्यासा अर किते आंख्यां तै भी पाणी पङै। "मोरनी"
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  • Conserve water Conserve energy
    Conserve wildlife and plant a tree
    Recycle reduce reuse
    Resources are few
    Kindly don't misuse
    Say no to plastic
    Use eco-friendly devices
    That makes change fantastic
    Make mother earth to dwell
    Which we have made a hell.
    "Morni"
    Conserve water Conserve energy Conserve wildlife and plant a tree Recycle reduce reuse Resources are few Kindly don't misuse Say no to plastic Use eco-friendly devices That makes change fantastic Make mother earth to dwell Which we have made a hell. "Morni"
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  • एहतराम करुंगी मैं हमेशा तुम्हारा..
    चुपचाप यूँ ही बस नज़रें झुकाकर!

    चले आना जब थकने लगे शब्द!
    बैठना, काँधे पर मेरे सिर को टिका कर!

    न शर्तें , न वादे , न किस्से, न कहानी..
    लाना बस खुद को एक विद्यर्थी बनाकर!

    दो पल जो गुजारेंगे हम शामे खामोशी में..
    बारहा गुनगुनाऊँगी उन्हें मैं नज़्में बनाकर!

    तुम्हें जाना तो पड़ेगा हर बार की तरह ..
    थोड़ा सा मगर रख लूँगी दुआओं में छुपाकर!
    "मोरनी"
    एहतराम करुंगी मैं हमेशा तुम्हारा.. चुपचाप यूँ ही बस नज़रें झुकाकर! चले आना जब थकने लगे शब्द! बैठना, काँधे पर मेरे सिर को टिका कर! न शर्तें , न वादे , न किस्से, न कहानी.. लाना बस खुद को एक विद्यर्थी बनाकर! दो पल जो गुजारेंगे हम शामे खामोशी में.. बारहा गुनगुनाऊँगी उन्हें मैं नज़्में बनाकर! तुम्हें जाना तो पड़ेगा हर बार की तरह .. थोड़ा सा मगर रख लूँगी दुआओं में छुपाकर! "मोरनी"
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  • बाहर की दुनिया बदलती रहेगी
    दिक्कत परेशानी सब चलती रहेगी
    पर तु नदी सा ना उनके संग बह जा
    खुद को स्थिर पहाड बना
    तु खुद में ठहराव ला
    चौदह दिन बढे चांद फिर आगे घटे चांद
    तु उस चांद सा ना हो जा,
    जो अमावस में भी पूरा रहे खुद को ऐसा सूरज बना
    तु खुद में ठहराव ला
    पतझड सावन सब एक से
    तु टहनी पर ना जा
    जो सूखे में भी जिंदा रहे खुद को ऐसा बीज बना
    तु खुद में ठहराव ला
    अमृत के लिए देव लङे विष देख सब भागे
    जो उस विष को भी ग्रहण करे, खुद में ऐसे महादेव जगा
    तु खुद में ठहराव ला, तु खुद में ठहराव ला ।।
    "मोरनी"
    बाहर की दुनिया बदलती रहेगी दिक्कत परेशानी सब चलती रहेगी पर तु नदी सा ना उनके संग बह जा खुद को स्थिर पहाड बना तु खुद में ठहराव ला चौदह दिन बढे चांद फिर आगे घटे चांद तु उस चांद सा ना हो जा, जो अमावस में भी पूरा रहे खुद को ऐसा सूरज बना तु खुद में ठहराव ला पतझड सावन सब एक से तु टहनी पर ना जा जो सूखे में भी जिंदा रहे खुद को ऐसा बीज बना तु खुद में ठहराव ला अमृत के लिए देव लङे विष देख सब भागे जो उस विष को भी ग्रहण करे, खुद में ऐसे महादेव जगा तु खुद में ठहराव ला, तु खुद में ठहराव ला ।। "मोरनी"
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