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प्रिय सखी...
माना कि अभी तन्हा हूं मैं
सोचती हूं कि
तेरे ख्यालों में कितनी बची हूं मैं

न भीड़ है न तमाशा कोई
लगता है कि
बंद आंखों से तुझे देखती हूं मैं

माना कि अभी चुप हूं मैं
महसूस करो
कानों में तुम्हारे कुछ बोलती हूं मैं

माना कि सिरसा से गुम हो चुकी हूं मैं
नारनौंद की गलियों में
सिर्फ़ तुम्हें ही तो ढ़ूंढ़ती हूं मैं

चले जाना ही जाना नहीं होता है
जानती हो न तुम
ख़्वाबों में तुम तक लौटती हूं मैं ।
"मोरनी"
प्रिय सखी... माना कि अभी तन्हा हूं मैं सोचती हूं कि तेरे ख्यालों में कितनी बची हूं मैं न भीड़ है न तमाशा कोई लगता है कि बंद आंखों से तुझे देखती हूं मैं माना कि अभी चुप हूं मैं महसूस करो कानों में तुम्हारे कुछ बोलती हूं मैं माना कि सिरसा से गुम हो चुकी हूं मैं नारनौंद की गलियों में सिर्फ़ तुम्हें ही तो ढ़ूंढ़ती हूं मैं चले जाना ही जाना नहीं होता है जानती हो न तुम ख़्वाबों में तुम तक लौटती हूं मैं । "मोरनी"
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