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बेटी की पिता से अर्ज...
और कुछ तुझसे नही मांगती
एक बात मान ले तू मेरी बाबुल
उस घर भेजना तू बाबुल
जिस घर मे हो लायब्रेरी ...
जहाँ अक्षरों और शब्दों के रंग हों
उस घर मे होती हैं नज़ाकतें..
मुझे ऐसा जाट नही चाहिए
जो कंधे पर बंदूक रखता हो
जो जीप पर गेड़ियाँ लगाता हो
जो कबूतर और कुत्ते पालता हो..
जो किताबों को उदास होकर पढ़ता हो
मुझे तो ऐसा मिले जो पोथी को जानता हो
इतनी खुशी ही मेरे लिए बहुत है।
"मोरनी"
बेटी की पिता से अर्ज... और कुछ तुझसे नही मांगती एक बात मान ले तू मेरी बाबुल उस घर भेजना तू बाबुल जिस घर मे हो लायब्रेरी ... जहाँ अक्षरों और शब्दों के रंग हों उस घर मे होती हैं नज़ाकतें.. मुझे ऐसा जाट नही चाहिए जो कंधे पर बंदूक रखता हो जो जीप पर गेड़ियाँ लगाता हो जो कबूतर और कुत्ते पालता हो.. जो किताबों को उदास होकर पढ़ता हो मुझे तो ऐसा मिले जो पोथी को जानता हो इतनी खुशी ही मेरे लिए बहुत है। "मोरनी"
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