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मैं तो चुप हूँ तुम्हें कुछ कहना है क्या...
मैं तो बस डूब रही हूँ तुम्हें अब भी बहना है क्या...
मेरे बरदाश्त के बाहर है जो दर्द अभी तुम्हें सहना है क्या...
मेरा दिल तो खंडहर टूटा तुम्हें इसमें अब भी रहना है क्या...
सुखों के जेवर नहीं भाये मुझको दुःखों का कोई गहना है क्या...
मिट्टी के घरोंदों की किस्मत में लिखा महज़ ढ़हना है क्या...
"मोरनी"
मैं तो चुप हूँ तुम्हें कुछ कहना है क्या... मैं तो बस डूब रही हूँ तुम्हें अब भी बहना है क्या... मेरे बरदाश्त के बाहर है जो दर्द अभी तुम्हें सहना है क्या... मेरा दिल तो खंडहर टूटा तुम्हें इसमें अब भी रहना है क्या... सुखों के जेवर नहीं भाये मुझको दुःखों का कोई गहना है क्या... मिट्टी के घरोंदों की किस्मत में लिखा महज़ ढ़हना है क्या... "मोरनी"
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