Sponsored
दोस्तों, बात लगभग दो वर्ष पूर्व की है। एक दिन अचानक रात्रि दो-ढाई बजे तेज आवाज़ में बजते म्यूज़िक के कारण मेरी नींद खुल गई। कुछ देर म्यूज़िक के साथ आती आवाज़ पर ध्यान केंद्रित किया तो मुझे एहसास हुआ युवाओं का एक समूह हमारी सोसायटी में अपना जन्मदिन मना रहा था। हालाँकि उस दिन एक लंबे टूर के कारण मैं काफ़ी थका हुआ था और अगले दिन के कमिटमेंट को अच्छे से पूर्ण करने के लिये मुझे आराम की सख़्त ज़रूरत महसूस हो रही थी। फिर भी मैंने कुछ देर इस म्यूज़िक और आती हुई आवाज़ को नज़रंदाज़ करने का निर्णय लिया क्योंकि मैं उन युवाओं की ख़ुशी या मस्ती में ख़लल नहीं डालना चाहता था।

लेकिन इसके ठीक विपरीत मस्ती कर रहे युवाओं को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था कि सोसाइटी में रहने वाले अन्य लोग उनके कारण परेशान हो रहे थे। लगभग आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद मैंने उन युवाओं को समझाने का निर्णय लिया और सोसायटी के सिक्योरिटी गार्ड के साथ उनके फ़्लैट में पहुँच कर उन्हें अपनी असुविधा से अवगत करवाया। वहाँ मौजूद कुछ युवा हमारी परेशानी समझ पाये और कुछ हमें समझाने का प्रयास करने लगे कि हम अपने घर में मज़े कर रहे हैं, कृपया हमारी मस्ती में ख़लल न डालें।

वैसे दोस्तों, यह स्थिति सिर्फ़ उन युवाओं की ही नहीं है। अगर आप कहीं भी नज़र घुमा कर देखेंगे तो पायेंगे कि हमारे आसपास कई ऐसे लोग मौजूद हैं, जो सब बातों को नज़रंदाज़ कर वस्तुओं के भोग में मस्त और व्यस्त हैं। उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि जिसे वो वस्तु का भोग समझ रहे हैं, असल में वो आने वाले समय में ना सिर्फ़ उनके बल्कि उनके परिवार के लिये भी मुश्किल का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिये आप किसी भी तरह के नशे, ग़लत आदतों या किसी भी बात की अति को ले सकते हैं।

याद रखियेगा साथियों, विवेक और संयम से अगर आप इस जगत, संसाधन या चीजों का भोग कर रहे हैं तो कहीं कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर किसी चीज की अति हो रही है तो वह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। इसका अर्थ हुआ जो पदार्थ याने संसाधन या चीजें हैं उनमें समस्या नहीं है, लेकिन हमारा उन्हें उपयोग या उपभोग करने का तरीक़ा समस्या पैदा करता है। उदाहरण के लिये ज़हर की बहुत थोड़ी सी मात्रा दवा का काम करती है और दवाई की अत्यधिक मात्रा विष बन जाती है।

यह बात दोस्तों हमारी ज़िंदगी से संदर्भित हर क्षेत्र में इसी तरीक़े से लागू होती है। उदाहरण के लिये इन्फ्रा तैयार करना हमारे जीवन को आसान या बेहतर बनाता है, लेकिन तेज़ी से इसमें बेतहाशा वृद्धि करना पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाता है। इस आधार पर कहा जाये तो चीजें नहीं अपितु उन्हें उपयोग में लेने का तरीक़ा उसे सही या ग़लत बनाता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो इस जीवन को सार्थक बनाने के लिये हमें संसाधनों से ज़्यादा बोध की ज़रूरत है। इसीलिये सब कुछ होने के बाद भी आपको कोई इंसान परेशान नज़र आयेगा और दूसरी और कुछ ना होने के बाद भी फ़क़ीर आपको मज़े में दिखेगा। अर्थात् ज्ञानी लोग बोध से ही इस संसार से पार पाते हैं।

जी हाँ साथियों, चुनौतियों, विपरीत परिस्थतियों, असफलताओं से हमें भागना याने संसार को छोड़ना नहीं है अपितु उसे समझना है। परमात्मा ने इस सृष्टि में जिस भी चीज का निर्माण किया है वह हमारे लिये ही किया है अर्थात् उसने इन सब चीजों की रचना हमारे सुख, हमारे आनंद के लिये की है। इसलिये इस सृष्टि में कुछ भी बेकार या निरर्थक नहीं है। हर चीज अपने समय और स्थिति में श्रेष्ठ है। इस आधार पर अगर आप अपने जीवन को सार्थक, ख़ुशियों और मस्ती से भरा बनाना चाहते हैं तो इस बात को स्वीकार लें कि इस दुनिया में मौजूद हर वस्तु ईश्वर की है। हमें तो बस उसको कब, कैसे, कहाँ, क्यों और किस उद्देश्य से उपयोग करना है, यह सीखना है। जीवन को उत्सव बनाने का यही एक मात्र तरीक़ा है।
दोस्तों, बात लगभग दो वर्ष पूर्व की है। एक दिन अचानक रात्रि दो-ढाई बजे तेज आवाज़ में बजते म्यूज़िक के कारण मेरी नींद खुल गई। कुछ देर म्यूज़िक के साथ आती आवाज़ पर ध्यान केंद्रित किया तो मुझे एहसास हुआ युवाओं का एक समूह हमारी सोसायटी में अपना जन्मदिन मना रहा था। हालाँकि उस दिन एक लंबे टूर के कारण मैं काफ़ी थका हुआ था और अगले दिन के कमिटमेंट को अच्छे से पूर्ण करने के लिये मुझे आराम की सख़्त ज़रूरत महसूस हो रही थी। फिर भी मैंने कुछ देर इस म्यूज़िक और आती हुई आवाज़ को नज़रंदाज़ करने का निर्णय लिया क्योंकि मैं उन युवाओं की ख़ुशी या मस्ती में ख़लल नहीं डालना चाहता था। लेकिन इसके ठीक विपरीत मस्ती कर रहे युवाओं को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था कि सोसाइटी में रहने वाले अन्य लोग उनके कारण परेशान हो रहे थे। लगभग आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद मैंने उन युवाओं को समझाने का निर्णय लिया और सोसायटी के सिक्योरिटी गार्ड के साथ उनके फ़्लैट में पहुँच कर उन्हें अपनी असुविधा से अवगत करवाया। वहाँ मौजूद कुछ युवा हमारी परेशानी समझ पाये और कुछ हमें समझाने का प्रयास करने लगे कि हम अपने घर में मज़े कर रहे हैं, कृपया हमारी मस्ती में ख़लल न डालें। वैसे दोस्तों, यह स्थिति सिर्फ़ उन युवाओं की ही नहीं है। अगर आप कहीं भी नज़र घुमा कर देखेंगे तो पायेंगे कि हमारे आसपास कई ऐसे लोग मौजूद हैं, जो सब बातों को नज़रंदाज़ कर वस्तुओं के भोग में मस्त और व्यस्त हैं। उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि जिसे वो वस्तु का भोग समझ रहे हैं, असल में वो आने वाले समय में ना सिर्फ़ उनके बल्कि उनके परिवार के लिये भी मुश्किल का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिये आप किसी भी तरह के नशे, ग़लत आदतों या किसी भी बात की अति को ले सकते हैं। याद रखियेगा साथियों, विवेक और संयम से अगर आप इस जगत, संसाधन या चीजों का भोग कर रहे हैं तो कहीं कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर किसी चीज की अति हो रही है तो वह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। इसका अर्थ हुआ जो पदार्थ याने संसाधन या चीजें हैं उनमें समस्या नहीं है, लेकिन हमारा उन्हें उपयोग या उपभोग करने का तरीक़ा समस्या पैदा करता है। उदाहरण के लिये ज़हर की बहुत थोड़ी सी मात्रा दवा का काम करती है और दवाई की अत्यधिक मात्रा विष बन जाती है। यह बात दोस्तों हमारी ज़िंदगी से संदर्भित हर क्षेत्र में इसी तरीक़े से लागू होती है। उदाहरण के लिये इन्फ्रा तैयार करना हमारे जीवन को आसान या बेहतर बनाता है, लेकिन तेज़ी से इसमें बेतहाशा वृद्धि करना पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाता है। इस आधार पर कहा जाये तो चीजें नहीं अपितु उन्हें उपयोग में लेने का तरीक़ा उसे सही या ग़लत बनाता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो इस जीवन को सार्थक बनाने के लिये हमें संसाधनों से ज़्यादा बोध की ज़रूरत है। इसीलिये सब कुछ होने के बाद भी आपको कोई इंसान परेशान नज़र आयेगा और दूसरी और कुछ ना होने के बाद भी फ़क़ीर आपको मज़े में दिखेगा। अर्थात् ज्ञानी लोग बोध से ही इस संसार से पार पाते हैं। जी हाँ साथियों, चुनौतियों, विपरीत परिस्थतियों, असफलताओं से हमें भागना याने संसार को छोड़ना नहीं है अपितु उसे समझना है। परमात्मा ने इस सृष्टि में जिस भी चीज का निर्माण किया है वह हमारे लिये ही किया है अर्थात् उसने इन सब चीजों की रचना हमारे सुख, हमारे आनंद के लिये की है। इसलिये इस सृष्टि में कुछ भी बेकार या निरर्थक नहीं है। हर चीज अपने समय और स्थिति में श्रेष्ठ है। इस आधार पर अगर आप अपने जीवन को सार्थक, ख़ुशियों और मस्ती से भरा बनाना चाहते हैं तो इस बात को स्वीकार लें कि इस दुनिया में मौजूद हर वस्तु ईश्वर की है। हमें तो बस उसको कब, कैसे, कहाँ, क्यों और किस उद्देश्य से उपयोग करना है, यह सीखना है। जीवन को उत्सव बनाने का यही एक मात्र तरीक़ा है।
0 Comments 0 Shares 944 Views