दोस्तों, मुझे लगता है जीवन में यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भौतिक सुख-सुविधायें, संसाधन, रिश्ते, ज़मीन-जायदाद आपके जीवन को आसान बना रही है या ग़ुलाम। आपको निश्चित तौर पर मेरी बात थोड़ी अटपटी लग रही होगी। चलिये इसे समझने से पहले हम हाल ही में घटी एक घटना पर चर्चा कर लेते हैं। कुछ दिन पूर्व मेरे पास एक महिला का काउन्सलिंग करवाने के लिये फ़ोन आया और उन्होंने अपनी बातचीत कुछ ऐसे शुरू की, ‘सर, मैं बहुत अधिक मानसिक तनाव में हूँ। कृपया मार्गदर्शन दिजीए, मेरी मदद कीजिये। आपकी जितनी भी फ़ीस होगी मैं देने के लिये तैयार हूँ।’ उनकी आवाज़ बड़ी गंभीर और परेशानी भरी लग रही थी। एक पल की खामोशी के बाद वे बात आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘सर, मैं प्रॉपर्टी के एक केस की वजह से तनाव में हूँ और उसी की वजह से मेरी जान को भी ख़तरा है।’

असल में उक्त महिला और उनकी सगी बहन के बीच विवाद की जड़ पिता का एक बँगला था, जिसे पाने के लिये यह दोनों लड़ रही थी। जब मैंने उनकी और बहन की वित्तीय स्थिति जानने का प्रयास करा तो मुझे पता चला कि दोनों ही बहनें पचास से सौ करोड़ की वर्थ रखती हैं और जिस बंगले के लिये वे लड़ रही हैं उसकी क़ीमत मात्र तीन से पाँच करोड़ है। उनकी बात सुनते ही मेरे मन में पहला विचार आया कि वे एक छोटी सी चीज के लिये अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट कर रही है। मैंने एक किस्से के माध्यम से उनसे एक प्रश्न पूछने का निर्णय लिया और बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘पहले आप मेरे एक छोटे से प्रश्न का जवाब दीजिये फिर हम आपकी समस्या पर विस्तार से चर्चा करते हैं। एक बार एक आदमी गाय को अपने घर की ओर ले जाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन वह जाने के लिये तैयार ही नहीं थी। वह आदमी जितना उसे अपनी ओर खींचने का प्रयास करता था, गाय ज़ोर लगा कर उससे उतनी ही अधिक दूर हो जाती थी। अब आप बताइये वह आदमी गाय को अपनी ओर क्यों खींच रहा था या उसे अपने घर क्यों ले जाने का प्रयास कर रहा था?’

प्रश्न पुरा होते ही वे महिला तपाक से बोली, ‘क्योंकि वह इंसान उस गाय का मालिक था।’ जवाब सुनते ही मैं हल्का सा मुस्कुराया और बोला, ‘मुझे तो नहीं लगता, हाँ यह ज़रूर संभव हो सकता है कि वह आदमी आपके समान सोचता हो।’ इतना कहकर मैं कुछ पलों के लिये चुप हो गया, फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘अगर आप मेरी बात से सहमत ना हों तो उस गाय की रस्सी छोड़ कर देख लो तब आपको पता चल जायेगा कि कौन किसका मालिक है और कौन किसका ग़ुलाम। अगर गाय उस व्यक्ति के पीछे आई तो गाय ग़ुलाम और अगर वह व्यक्ति गाय के पीछे गया तो वह व्यक्ति ग़ुलाम याने जो जिसके पीछे गया, वो उसका गुलाम।’

मेरे इतना कहते ही वह महिला सोच में पड़ गई और एकटक शून्य को देखने लगी। मैंने उनकी तंद्रा तोड़ते हुए बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘मैडम, वास्तव में वह बँगला आपके केस में गाय समान है। उसने आपको अपने मोहपाश में इतना अधिक बांध लिया है कि आप अपनी स्वतंत्रता, अपनी ख़ुशी, अपनी शांति, अपना स्वास्थ्य, अपनी संपत्ति और यहाँ तक की अपना जीवन तक दांव पर लगा चुकी हैं। पिछले कई वर्षों से आपने अपनी अर्जित की हुई संपत्ति, अपने समय, अपने अचीवमेंट का उपयोग अपनी शांति या ख़ुशी के लिये नहीं किया है। ऐसे में अगर आपको कुछ करोड़ और मिल गये तो आप उसका करेंगी क्या? मेरा तो मानना है कि आपको बँगले से ज़्यादा अपने जीवन, अपने रिश्ते, अपने स्वास्थ्य, अपनी शांति, अपनी ख़ुशी को महत्व देना चाहिये।’

दोस्तों, मुझे नहीं पता मेरा सुझाव सही था या नहीं, लेकिन मेरा तो यही मानना है। अक्सर हम ख़ुद को बहुत सी वस्तुओं और व्यक्तियों का मालिक समझते हैं, पर वास्तव में हम उनके मालिक नहीं, गुलाम होते हैं क्योंकि उनकी आवश्यकता हमें हैं। उन लोगों या वस्तुओं को हमारी ज़रूरत नहीं होती बल्कि हम ही उनके पीछे पड़े होते हैं। याद रखियेगा, जो जितनी रस्सियाँ पकड़े है, वो उतना ही गुलाम हैं। जिसने सभी रस्सियाँ याने बंधन छोड़ दिये हैं, जिसे किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं है, वही असली मालिक हैं… एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर!!!
दोस्तों, मुझे लगता है जीवन में यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भौतिक सुख-सुविधायें, संसाधन, रिश्ते, ज़मीन-जायदाद आपके जीवन को आसान बना रही है या ग़ुलाम। आपको निश्चित तौर पर मेरी बात थोड़ी अटपटी लग रही होगी। चलिये इसे समझने से पहले हम हाल ही में घटी एक घटना पर चर्चा कर लेते हैं। कुछ दिन पूर्व मेरे पास एक महिला का काउन्सलिंग करवाने के लिये फ़ोन आया और उन्होंने अपनी बातचीत कुछ ऐसे शुरू की, ‘सर, मैं बहुत अधिक मानसिक तनाव में हूँ। कृपया मार्गदर्शन दिजीए, मेरी मदद कीजिये। आपकी जितनी भी फ़ीस होगी मैं देने के लिये तैयार हूँ।’ उनकी आवाज़ बड़ी गंभीर और परेशानी भरी लग रही थी। एक पल की खामोशी के बाद वे बात आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘सर, मैं प्रॉपर्टी के एक केस की वजह से तनाव में हूँ और उसी की वजह से मेरी जान को भी ख़तरा है।’ असल में उक्त महिला और उनकी सगी बहन के बीच विवाद की जड़ पिता का एक बँगला था, जिसे पाने के लिये यह दोनों लड़ रही थी। जब मैंने उनकी और बहन की वित्तीय स्थिति जानने का प्रयास करा तो मुझे पता चला कि दोनों ही बहनें पचास से सौ करोड़ की वर्थ रखती हैं और जिस बंगले के लिये वे लड़ रही हैं उसकी क़ीमत मात्र तीन से पाँच करोड़ है। उनकी बात सुनते ही मेरे मन में पहला विचार आया कि वे एक छोटी सी चीज के लिये अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट कर रही है। मैंने एक किस्से के माध्यम से उनसे एक प्रश्न पूछने का निर्णय लिया और बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘पहले आप मेरे एक छोटे से प्रश्न का जवाब दीजिये फिर हम आपकी समस्या पर विस्तार से चर्चा करते हैं। एक बार एक आदमी गाय को अपने घर की ओर ले जाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन वह जाने के लिये तैयार ही नहीं थी। वह आदमी जितना उसे अपनी ओर खींचने का प्रयास करता था, गाय ज़ोर लगा कर उससे उतनी ही अधिक दूर हो जाती थी। अब आप बताइये वह आदमी गाय को अपनी ओर क्यों खींच रहा था या उसे अपने घर क्यों ले जाने का प्रयास कर रहा था?’ प्रश्न पुरा होते ही वे महिला तपाक से बोली, ‘क्योंकि वह इंसान उस गाय का मालिक था।’ जवाब सुनते ही मैं हल्का सा मुस्कुराया और बोला, ‘मुझे तो नहीं लगता, हाँ यह ज़रूर संभव हो सकता है कि वह आदमी आपके समान सोचता हो।’ इतना कहकर मैं कुछ पलों के लिये चुप हो गया, फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘अगर आप मेरी बात से सहमत ना हों तो उस गाय की रस्सी छोड़ कर देख लो तब आपको पता चल जायेगा कि कौन किसका मालिक है और कौन किसका ग़ुलाम। अगर गाय उस व्यक्ति के पीछे आई तो गाय ग़ुलाम और अगर वह व्यक्ति गाय के पीछे गया तो वह व्यक्ति ग़ुलाम याने जो जिसके पीछे गया, वो उसका गुलाम।’ मेरे इतना कहते ही वह महिला सोच में पड़ गई और एकटक शून्य को देखने लगी। मैंने उनकी तंद्रा तोड़ते हुए बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘मैडम, वास्तव में वह बँगला आपके केस में गाय समान है। उसने आपको अपने मोहपाश में इतना अधिक बांध लिया है कि आप अपनी स्वतंत्रता, अपनी ख़ुशी, अपनी शांति, अपना स्वास्थ्य, अपनी संपत्ति और यहाँ तक की अपना जीवन तक दांव पर लगा चुकी हैं। पिछले कई वर्षों से आपने अपनी अर्जित की हुई संपत्ति, अपने समय, अपने अचीवमेंट का उपयोग अपनी शांति या ख़ुशी के लिये नहीं किया है। ऐसे में अगर आपको कुछ करोड़ और मिल गये तो आप उसका करेंगी क्या? मेरा तो मानना है कि आपको बँगले से ज़्यादा अपने जीवन, अपने रिश्ते, अपने स्वास्थ्य, अपनी शांति, अपनी ख़ुशी को महत्व देना चाहिये।’ दोस्तों, मुझे नहीं पता मेरा सुझाव सही था या नहीं, लेकिन मेरा तो यही मानना है। अक्सर हम ख़ुद को बहुत सी वस्तुओं और व्यक्तियों का मालिक समझते हैं, पर वास्तव में हम उनके मालिक नहीं, गुलाम होते हैं क्योंकि उनकी आवश्यकता हमें हैं। उन लोगों या वस्तुओं को हमारी ज़रूरत नहीं होती बल्कि हम ही उनके पीछे पड़े होते हैं। याद रखियेगा, जो जितनी रस्सियाँ पकड़े है, वो उतना ही गुलाम हैं। जिसने सभी रस्सियाँ याने बंधन छोड़ दिये हैं, जिसे किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं है, वही असली मालिक हैं… एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर!!!
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