आइये साथियों, आज के लेख की शुरुआत बचपन में सुनी एक कहानी से करते हैं जो हमें व्यवहार कुशल बनने की प्रेरणा देती है। एक बार की बात है रामपुर के राजा ने जंगल जाकर शेर का शिकार करने की योजना बनाई और कुछ सैनिकों और मंत्रियों को लेकर वन की ओर निकल गये। उस रात शेर को खोजने और उसका शिकार करने के प्रयास में राजा जंगल में भटक गये।

गुजरते वक़्त के साथ वन विहार कर शिकार करने की चाह, अब राजा के लिये एक बड़ी परेशानी का रूप लेती जा रही थी क्योंकि अब उनके पास ना तो भूख मिटाने के लिये भोजन बचा था और ना ही प्यास बुझाने के लिये पानी। जंगल में भटकते-भटकते अचानक ही राजा की निगाह एक झौपड़ी पर पड़ी। राजा ने तुरंत अपने एक सैनिक को आदेश दिया कि वह उस झौपड़ी के मालिक से निवेदन कर पीने के पानी का इन्तज़ाम करे।

राजा की आज्ञा के अनुसार तुरंत एक सैनिक झौपड़ी की ओर गया और उसके मालिक, जो कि एक अंधा बुजुर्ग था, से बड़े रोब के साथ बोला, ‘ऐ अंधे जरा एक लोटा पीने का पानी दे।’ वह अंधा बुढ़ा शायद थोड़ा सनकी या अकड़ू था उसने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, ‘चल भाग यहाँ से, कुछ नहीं दूँगा तुझे। तेरे जैसे सैनिक से मैं नहीं डरता।’ सैनिक निराश होकर लौट गया और जाकर सारी बात राजा को कह सुनाई। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि वह जाकर उस बुजुर्ग व्यक्ति से बात करे और पीने के पानी का इन्तज़ाम करे। राजा की आज्ञा पा मंत्री तुरंत उस झौपड़ी में पहुँचा और अंधे बुजुर्ग से बोला, ‘ए अंधे, तुझे ढेर सारा पैसा मिलेगा, जरा हमको पानी दे दो।’ अंधा बुजुर्ग फिर अकड़ गया और बोला, ‘लगता है तू सैनिकों का सरदार है। तेरी चिकनी-चुपड़ी बातों से मैं बहकने वाला नहीं हूँ। जा-जा यहाँ से पानी नहीं मिलेगा।।’

मंत्री को ख़ाली हाथ लौटता देख प्यास से व्याकुल राजा स्वयं अंधे बुजुर्ग की ओर चल दिये। वहाँ पहुँच कर राजा ने सबसे पहले उस बुजुर्ग अंधे को नमस्कार किया और फिर बड़े विनम्र स्वर में बोले, ‘बाबा, बहुत प्यासा हूँ, प्यास से गला सुख गया है। एक लोटा जल दे देंगे तो बड़ी कृपा होगी।’ अंधे बुजुर्ग ने बड़े सम्मान के साथ राजा को बैठाया और बड़े आदर भरे भाव के साथ बोले, ‘आप जैसे श्रेष्ठ जनों के लिये तो राजा जैसा आदर है। सर्वप्रथम तो यह जल और अन्न ग्रहण कीजिए और साथ ही यह भी बताइये कि मैं आपकी और क्या सेवा कर सकता हूँ। आप जैसे सुधि जनों के लिये तो यह जान भी हाज़िर है।’

राजा ने सर्वप्रथम अन्न और जल ग्रहण कर अपनी और साथ आये सभी लोगों की भूख और प्यास मिटाई और फिर हाथ जोड़कर अंधे का शुक्रिया अदा करते हुए बड़ी नम्र वाणी में बोले, ‘बाबा, आपको तो दिखाई नहीं देता है फिर भी जल माँगने आये मेरे साथी सैनिक और मंत्री को आपने कैसे पहचान लिया?’ राजा का प्रश्न सुनते ही अन्धे बुजुर्ग मुस्कुराये और बोले, ‘राजन, वाणी का भाव और बोले गये शब्दों से इंसान के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है।

बात तो दोस्तों, उस अन्धे बुजुर्ग की बिलकुल सही थी। इसीलिये तो हमें बचपन से ही विनम्रता का पाठ सिखाया जाता है। याद रखियेगा विनम्रता के साथ कहे गये मीठे शब्द आपको किसी के दिल में उतरने का मौक़ा देते हैं। वहीं दूसरी ओर कठोर और कड़वे शब्द और रूखा व्यवहार आपको हमेशा के लिये किसी के दिल से उतार सकता है। इसलिये साथियों, सदैव मीठे वचन बोलिये। यह आपको हर स्थिति-परिस्थिति में आदर, स्नेह और प्यार पाने में मदद करेंगे। वैसे भी कहा गया है ग़ुस्सा, अपशब्द और कठोर वचन कमज़ोरों के हथियार हैं।
आइये साथियों, आज के लेख की शुरुआत बचपन में सुनी एक कहानी से करते हैं जो हमें व्यवहार कुशल बनने की प्रेरणा देती है। एक बार की बात है रामपुर के राजा ने जंगल जाकर शेर का शिकार करने की योजना बनाई और कुछ सैनिकों और मंत्रियों को लेकर वन की ओर निकल गये। उस रात शेर को खोजने और उसका शिकार करने के प्रयास में राजा जंगल में भटक गये। गुजरते वक़्त के साथ वन विहार कर शिकार करने की चाह, अब राजा के लिये एक बड़ी परेशानी का रूप लेती जा रही थी क्योंकि अब उनके पास ना तो भूख मिटाने के लिये भोजन बचा था और ना ही प्यास बुझाने के लिये पानी। जंगल में भटकते-भटकते अचानक ही राजा की निगाह एक झौपड़ी पर पड़ी। राजा ने तुरंत अपने एक सैनिक को आदेश दिया कि वह उस झौपड़ी के मालिक से निवेदन कर पीने के पानी का इन्तज़ाम करे। राजा की आज्ञा के अनुसार तुरंत एक सैनिक झौपड़ी की ओर गया और उसके मालिक, जो कि एक अंधा बुजुर्ग था, से बड़े रोब के साथ बोला, ‘ऐ अंधे जरा एक लोटा पीने का पानी दे।’ वह अंधा बुढ़ा शायद थोड़ा सनकी या अकड़ू था उसने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, ‘चल भाग यहाँ से, कुछ नहीं दूँगा तुझे। तेरे जैसे सैनिक से मैं नहीं डरता।’ सैनिक निराश होकर लौट गया और जाकर सारी बात राजा को कह सुनाई। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि वह जाकर उस बुजुर्ग व्यक्ति से बात करे और पीने के पानी का इन्तज़ाम करे। राजा की आज्ञा पा मंत्री तुरंत उस झौपड़ी में पहुँचा और अंधे बुजुर्ग से बोला, ‘ए अंधे, तुझे ढेर सारा पैसा मिलेगा, जरा हमको पानी दे दो।’ अंधा बुजुर्ग फिर अकड़ गया और बोला, ‘लगता है तू सैनिकों का सरदार है। तेरी चिकनी-चुपड़ी बातों से मैं बहकने वाला नहीं हूँ। जा-जा यहाँ से पानी नहीं मिलेगा।।’ मंत्री को ख़ाली हाथ लौटता देख प्यास से व्याकुल राजा स्वयं अंधे बुजुर्ग की ओर चल दिये। वहाँ पहुँच कर राजा ने सबसे पहले उस बुजुर्ग अंधे को नमस्कार किया और फिर बड़े विनम्र स्वर में बोले, ‘बाबा, बहुत प्यासा हूँ, प्यास से गला सुख गया है। एक लोटा जल दे देंगे तो बड़ी कृपा होगी।’ अंधे बुजुर्ग ने बड़े सम्मान के साथ राजा को बैठाया और बड़े आदर भरे भाव के साथ बोले, ‘आप जैसे श्रेष्ठ जनों के लिये तो राजा जैसा आदर है। सर्वप्रथम तो यह जल और अन्न ग्रहण कीजिए और साथ ही यह भी बताइये कि मैं आपकी और क्या सेवा कर सकता हूँ। आप जैसे सुधि जनों के लिये तो यह जान भी हाज़िर है।’ राजा ने सर्वप्रथम अन्न और जल ग्रहण कर अपनी और साथ आये सभी लोगों की भूख और प्यास मिटाई और फिर हाथ जोड़कर अंधे का शुक्रिया अदा करते हुए बड़ी नम्र वाणी में बोले, ‘बाबा, आपको तो दिखाई नहीं देता है फिर भी जल माँगने आये मेरे साथी सैनिक और मंत्री को आपने कैसे पहचान लिया?’ राजा का प्रश्न सुनते ही अन्धे बुजुर्ग मुस्कुराये और बोले, ‘राजन, वाणी का भाव और बोले गये शब्दों से इंसान के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है। बात तो दोस्तों, उस अन्धे बुजुर्ग की बिलकुल सही थी। इसीलिये तो हमें बचपन से ही विनम्रता का पाठ सिखाया जाता है। याद रखियेगा विनम्रता के साथ कहे गये मीठे शब्द आपको किसी के दिल में उतरने का मौक़ा देते हैं। वहीं दूसरी ओर कठोर और कड़वे शब्द और रूखा व्यवहार आपको हमेशा के लिये किसी के दिल से उतार सकता है। इसलिये साथियों, सदैव मीठे वचन बोलिये। यह आपको हर स्थिति-परिस्थिति में आदर, स्नेह और प्यार पाने में मदद करेंगे। वैसे भी कहा गया है ग़ुस्सा, अपशब्द और कठोर वचन कमज़ोरों के हथियार हैं।
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