दोस्तों, शब्दों का हमारे जीवन में बड़ा योगदान है, किसी के कहे शब्द आपको ऊर्जा से भर सकते हैं, तो किसी के कहे शब्द आपको हताश भी कर सकते हैं। ठीक इसी तरह आपके कहे शब्द आपको किसी के दिल में, तो किसी के दिल से उतार सकते हैं। इसीलिये कहा जाता है, ‘जो इंसान शब्दों की शक्ति को समझ जाता है, वह अपने जीवन को आसान व उपयोगी बना लेता है।’ मेरी नज़र में तो शब्द ही किसी इंसान की असली पहचान होते हैं। इसीलिये कहा गया है, ‘जब तक आप चुप है तब तक शब्द आपके ग़ुलाम हैं और बोलने के बाद आप शब्दों के ग़ुलाम हैं।’ जी हाँ साथियों, एक ओर जहाँ शब्द हथियारों के घाव को आसानी से भर सकते हैं वहीं दूसरी ओर शब्दों के द्वारा दिये गये घाव किसी के जीवन को ख़त्म तक कर सकते हैं। अपनी बात को मैं दोस्तों, आपको इस दुनिया के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन से समझाने का प्रयास करता हूँ।

अल्बर्ट आइंस्टीन, ३ वर्ष की उम्र तक ठीक से बोल नहीं पाते थे और साथ ही उन्हें किसी भी नई चीज को सीखने या समझने में बहुत अधिक वक़्त लगता था। इसी कारण एक दिन विद्यालय ने अल्बर्ट की माँ को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि आपका बेटा ‘स्लो लर्नर’ है और उसे सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाना असंभव है। इसलिये कृपया उसे विद्यालय से निकाल लीजिये। पत्र जब आइंस्टीन की माँ ने पढ़ा तो उनकी आँखों से आसूँ बहने लगे। माँ को रोते देख आइंस्टीन ने पूछा, ‘माँ, इस पत्र में ऐसा क्या लिखा है जो तुम रो रही हो।’ माँ ने तुरंत अपने आसूँ पोंछे और आइंस्टीन के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘कुछ नहीं, विद्यालय वालों का बस इतना कहना है कि आपका पुत्र अल्बर्ट बहुत होनहार और काबिल है। उस बच्चे की क़ाबिलियत को निखार पाना वहाँ के शिक्षकों के बस की बात नहीं है। इसलिये अब तुम्हारी आगे की शिक्षा हम घर से ही शुरू करेंगे।’

हालाँकि आइंस्टीन के माता-पिता विद्यालय के तर्क से सहमत नहीं थे क्योंकि वे जानते थे आइंस्टीन को विद्यालय से इसलिये नफ़रत थी क्योंकि वे वहाँ कुछ नया नहीं सीख पा रहे थे। इसलिये माँ ने सर्वप्रथम घर के माहौल को सीखने के लिये उत्साहवर्धक बनाने का निर्णय लिया और वे उन्हें सीखने में मदद करने वाले खिलौने और किताबें उपलब्ध करवाने लगी। इससे आइंस्टीन में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा होने लगी। कुछ समय बाद माँ को एहसास हुआ कि आइंस्टीन को फ़ोकस करने में दिक़्क़त होती है और वे हर कार्य को जल्दबाज़ी याने हड़बड़ाहट में करते हैं। फ़ोकस बढ़ाने और धैर्य विकसित करने के लिये उन्होंने आइंस्टीन को वायलिन सिखाना शुरू कर दिया। असल में संगीत में रुचि होने के कारण वे जानती थी कि बिना धैर्य और फ़ोकस के संगीत सीखना असंभव है और अगर आइंस्टीन की रुचि संगीत में हो गई तो वे धैर्य के साथ फ़ोकस बनाये रखना सीख जाएँगे।

जैसे-जैसे आइंस्टीन बड़े होते गए, उनकी माँ ने उनकी जिज्ञासा बढ़ाने के लिये नये-नये प्रयोग करना शुरू कर दिये। जैसे, हर गुरुवार को पूरे परिवार और वैज्ञानिक मित्रों के लिये दोपहर का भोज आयोजित करना। भोजन के समय पर आइंस्टीन के चाचा अक्सर उनसे बीज गणित के पेचीदा प्रश्न पूछा करते थे और जब भी आइंस्टीन उसके सही जवाब दे पाते थे, वे ख़ुशी से चिल्ला कर उछला करते थे। इस प्रयोग का नतीजा यह हुआ कि मात्र बारह साल की उम्र में उन्होंने कैलकुलस का अध्ययन शुरू कर दिया। दोस्तों, इसके आगे की कहानी तो पूरी दुनिया जानती ही है।

दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य शब्दों पर पकड़ विकसित कर लोगों के दिलों को जीतना; अपने लक्ष्यों को पाना है तो आज ही से निम्न तीन सूत्रों को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना लें-

पहला सूत्र - प्रेरणादायी शब्दों का प्रयोग करें

सामान्य बातचीत के दौरान प्रेरणादायी शब्दों का प्रयोग करना आपको सामने वाले के दिल में विशिष्ट स्थान दिलाता है। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आप सामने वाले के दिल को जीतने के प्रयास में झूठ बोलना शुरू कर दें। अगर आपको सामने वाले में कुछ कमियाँ नज़र आ रही है तो उसे इस विषय में अवश्य बतायें लेकिन उससे होने वाली समस्याओं और उसे दूर करने के समाधान के साथ।

दूसरा सूत्र - नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर रहें

संगत हमेशा आपकी रंगत बदलती है। अगर आप नकारात्मक लोगों के साथ रहेंगे तो वैसा नज़रिया रखेंगे और सकारात्मक लोगों के साथ रहेंगे तो वैसा, और जैसा आपका नज़रिया होगा वैसे ही शब्दों का प्रयोग आप बातचीत के दौरान करेंगे।

तीसरा सूत्र - ख़ुद से सकारात्मक बातचीत करें

ख़ुद से कहे शब्द हमारे जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं क्योंकि यह आपके अंतर्मन में कही गई बात के प्रति विश्वास पैदा करते हैं। याद रखियेगा, ख़ुद से कहे शब्द पहले विचार को जन्म देते हैं और विचार आपकी सोच, नज़रिये और व्यवहार को प्रभावित कर जीवन की दिशा और दशा बेहतर बनाता है।

इसलिए दोस्तों, शब्दों की शक्ति को पहचानिये और जहाँ तक संभव हो सके सकारात्मक शब्दों का प्रयोग कीजिए, इस विश्वास के साथ कि कहे गये शब्द आपकी और आपके आसपास मौजूद लोगों की ज़िन्दगी बदल रहे हैं।

दोस्तों, शब्दों का हमारे जीवन में बड़ा योगदान है, किसी के कहे शब्द आपको ऊर्जा से भर सकते हैं, तो किसी के कहे शब्द आपको हताश भी कर सकते हैं। ठीक इसी तरह आपके कहे शब्द आपको किसी के दिल में, तो किसी के दिल से उतार सकते हैं। इसीलिये कहा जाता है, ‘जो इंसान शब्दों की शक्ति को समझ जाता है, वह अपने जीवन को आसान व उपयोगी बना लेता है।’ मेरी नज़र में तो शब्द ही किसी इंसान की असली पहचान होते हैं। इसीलिये कहा गया है, ‘जब तक आप चुप है तब तक शब्द आपके ग़ुलाम हैं और बोलने के बाद आप शब्दों के ग़ुलाम हैं।’ जी हाँ साथियों, एक ओर जहाँ शब्द हथियारों के घाव को आसानी से भर सकते हैं वहीं दूसरी ओर शब्दों के द्वारा दिये गये घाव किसी के जीवन को ख़त्म तक कर सकते हैं। अपनी बात को मैं दोस्तों, आपको इस दुनिया के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन से समझाने का प्रयास करता हूँ। अल्बर्ट आइंस्टीन, ३ वर्ष की उम्र तक ठीक से बोल नहीं पाते थे और साथ ही उन्हें किसी भी नई चीज को सीखने या समझने में बहुत अधिक वक़्त लगता था। इसी कारण एक दिन विद्यालय ने अल्बर्ट की माँ को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि आपका बेटा ‘स्लो लर्नर’ है और उसे सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाना असंभव है। इसलिये कृपया उसे विद्यालय से निकाल लीजिये। पत्र जब आइंस्टीन की माँ ने पढ़ा तो उनकी आँखों से आसूँ बहने लगे। माँ को रोते देख आइंस्टीन ने पूछा, ‘माँ, इस पत्र में ऐसा क्या लिखा है जो तुम रो रही हो।’ माँ ने तुरंत अपने आसूँ पोंछे और आइंस्टीन के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘कुछ नहीं, विद्यालय वालों का बस इतना कहना है कि आपका पुत्र अल्बर्ट बहुत होनहार और काबिल है। उस बच्चे की क़ाबिलियत को निखार पाना वहाँ के शिक्षकों के बस की बात नहीं है। इसलिये अब तुम्हारी आगे की शिक्षा हम घर से ही शुरू करेंगे।’ हालाँकि आइंस्टीन के माता-पिता विद्यालय के तर्क से सहमत नहीं थे क्योंकि वे जानते थे आइंस्टीन को विद्यालय से इसलिये नफ़रत थी क्योंकि वे वहाँ कुछ नया नहीं सीख पा रहे थे। इसलिये माँ ने सर्वप्रथम घर के माहौल को सीखने के लिये उत्साहवर्धक बनाने का निर्णय लिया और वे उन्हें सीखने में मदद करने वाले खिलौने और किताबें उपलब्ध करवाने लगी। इससे आइंस्टीन में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा होने लगी। कुछ समय बाद माँ को एहसास हुआ कि आइंस्टीन को फ़ोकस करने में दिक़्क़त होती है और वे हर कार्य को जल्दबाज़ी याने हड़बड़ाहट में करते हैं। फ़ोकस बढ़ाने और धैर्य विकसित करने के लिये उन्होंने आइंस्टीन को वायलिन सिखाना शुरू कर दिया। असल में संगीत में रुचि होने के कारण वे जानती थी कि बिना धैर्य और फ़ोकस के संगीत सीखना असंभव है और अगर आइंस्टीन की रुचि संगीत में हो गई तो वे धैर्य के साथ फ़ोकस बनाये रखना सीख जाएँगे। जैसे-जैसे आइंस्टीन बड़े होते गए, उनकी माँ ने उनकी जिज्ञासा बढ़ाने के लिये नये-नये प्रयोग करना शुरू कर दिये। जैसे, हर गुरुवार को पूरे परिवार और वैज्ञानिक मित्रों के लिये दोपहर का भोज आयोजित करना। भोजन के समय पर आइंस्टीन के चाचा अक्सर उनसे बीज गणित के पेचीदा प्रश्न पूछा करते थे और जब भी आइंस्टीन उसके सही जवाब दे पाते थे, वे ख़ुशी से चिल्ला कर उछला करते थे। इस प्रयोग का नतीजा यह हुआ कि मात्र बारह साल की उम्र में उन्होंने कैलकुलस का अध्ययन शुरू कर दिया। दोस्तों, इसके आगे की कहानी तो पूरी दुनिया जानती ही है। दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य शब्दों पर पकड़ विकसित कर लोगों के दिलों को जीतना; अपने लक्ष्यों को पाना है तो आज ही से निम्न तीन सूत्रों को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना लें- पहला सूत्र - प्रेरणादायी शब्दों का प्रयोग करें सामान्य बातचीत के दौरान प्रेरणादायी शब्दों का प्रयोग करना आपको सामने वाले के दिल में विशिष्ट स्थान दिलाता है। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आप सामने वाले के दिल को जीतने के प्रयास में झूठ बोलना शुरू कर दें। अगर आपको सामने वाले में कुछ कमियाँ नज़र आ रही है तो उसे इस विषय में अवश्य बतायें लेकिन उससे होने वाली समस्याओं और उसे दूर करने के समाधान के साथ। दूसरा सूत्र - नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर रहें संगत हमेशा आपकी रंगत बदलती है। अगर आप नकारात्मक लोगों के साथ रहेंगे तो वैसा नज़रिया रखेंगे और सकारात्मक लोगों के साथ रहेंगे तो वैसा, और जैसा आपका नज़रिया होगा वैसे ही शब्दों का प्रयोग आप बातचीत के दौरान करेंगे। तीसरा सूत्र - ख़ुद से सकारात्मक बातचीत करें ख़ुद से कहे शब्द हमारे जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं क्योंकि यह आपके अंतर्मन में कही गई बात के प्रति विश्वास पैदा करते हैं। याद रखियेगा, ख़ुद से कहे शब्द पहले विचार को जन्म देते हैं और विचार आपकी सोच, नज़रिये और व्यवहार को प्रभावित कर जीवन की दिशा और दशा बेहतर बनाता है। इसलिए दोस्तों, शब्दों की शक्ति को पहचानिये और जहाँ तक संभव हो सके सकारात्मक शब्दों का प्रयोग कीजिए, इस विश्वास के साथ कि कहे गये शब्द आपकी और आपके आसपास मौजूद लोगों की ज़िन्दगी बदल रहे हैं।
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