दोस्तों, अगर आप कर्मवीर हैं अर्थात् प्रतिदिन किन्हीं लक्ष्यों को पाने के लिये अपनी ओर से भरसक प्रयास कर रहे हैं; मेहनत कर रहे हैं तो यक़ीन मानियेगा कभी सफलता आपके कदम चूमेगी तो कभी असफलता आपको मुँह चिड़ायेगी; आपके आत्मविश्वास को डगमगा कर हौंसले को कम करेगी। लेकिन दोस्तों अगर आपने असफलता को सफलता की राह में मिलने वाली सीख मानना शुरू कर दिया तो आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है।
जी हाँ साथियों, मैंने जीवन से मिले अब तक के अनुभव से तो यही सीखा है। आज अगर मैं जीवन में पीछे पलटकर अपनी असफलताओं को देखता हूँ तो ऐसा लगता है, जैसे, वे सब सफलता तक पहुँचाने वाली सीढ़ीयाँ थी। उदाहरण के लिये , तमाम तकनीकी योग्यताएँ एवं ज्ञान होने के बाद भी जब कंप्यूटर के व्यवसाय में असफलता हाथ लगी तो मैंने जीवन में नज़रिये के महत्व को समझा और सीखा कि सफलता प्रतिभा की अपेक्षा दृष्टिकोण पर अधिक निर्भर करती है। इसी तरह कई बार सफलता-असफलता के बीच झूलते हुए मैंने सीखा कि अगर हमारी ख़ुशी सफलता और असफलता पर निर्भर हुई तो हम निश्चित तौर पर जीवन भर दुखी ही रहने वाले हैं। इसलिये आज मैं हर हाल में खुश रहता हूँ।
इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि अब मैं जीवन में मिली असफलताओं के लिये भी ईश्वर का आभारी हूँ। वैसे दोस्तों, यही बात हमारे धर्मग्रन्थ महाभारत ने हमें सिखाई है। जब पांडव विपत्ति के दौर से गुजर रहे थे तब माता कुंती ने ईश्वर का धन्यवाद देते हुए कहा था,‘धन्यवाद प्रभु, मेरे जीवन में अगर यह दुःख ना आता, तो मै आपका स्मरण कैसे करती? मैं कहीं अपने सुखों में उलझकर दिग्भ्रमित ना हो जाऊँ, इसीलिए आपने मेरे ऊपर यह कृपा की होगी।’ ठीक इसी तरह की सीख हमें सुदामा जी से भी मिलती है। जब भी ग़रीबी या परिस्थिति के कारण सुदामा जी को भूखा रहना पड़ता था तो वे अपने प्रभि को धन्यवाद देते हुए कहते थे, ‘हे प्रभु! आपकी कृपा से आज मुझे एक बार फिर एकादशी जैसा पुण्य प्राप्त हो रहा है।’
याद रखियेगा दोस्तों, जीवन की प्रत्येक परिस्थिति हमें जीवन को बेहतर बनाने के लिये आवश्यक, कोई न कोई संदेश देती है। जी हाँ, यक़ीन मानियेगा इस जीवन में ऐसी कोई परिस्थिति ही नहीं है जिसे अवसर में ना बदला जा सके। ईश्वर हमें वही अनुभव देता है या हमारा सामना उन्हीं परेशानियों या चुनौतियों से करवाता है, जिनसे निपटने की क्षमता हमारे अंदर होती है। इसके पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें अपनी शक्तियाँ याद दिलवाना और इससे मिले अनुभव से हमारे जीवन को बेहतर बनाना होता है।
इस आधार पर कहा जाये तो हमारे जीवन के सभी सुख और दुख सिर्फ़ और सिर्फ़ इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम प्रतिदिन, प्रतिपल का सामना किस नज़रिये से करते हैं याने जीवन में सामने आई विभिन्न परिस्थितियों को किस दृष्टि से देखते हैं। उपरोक्त आधार पर अगर आप सोचेंगे तो पायेंगे कि निश्चित तौर पर सकारात्मक दृष्टि हमारे जीवन को सुखमय बना देती है। एक बार दोस्तों, इस पर विचार कर देखियेगा ज़रूर…
जी हाँ साथियों, मैंने जीवन से मिले अब तक के अनुभव से तो यही सीखा है। आज अगर मैं जीवन में पीछे पलटकर अपनी असफलताओं को देखता हूँ तो ऐसा लगता है, जैसे, वे सब सफलता तक पहुँचाने वाली सीढ़ीयाँ थी। उदाहरण के लिये , तमाम तकनीकी योग्यताएँ एवं ज्ञान होने के बाद भी जब कंप्यूटर के व्यवसाय में असफलता हाथ लगी तो मैंने जीवन में नज़रिये के महत्व को समझा और सीखा कि सफलता प्रतिभा की अपेक्षा दृष्टिकोण पर अधिक निर्भर करती है। इसी तरह कई बार सफलता-असफलता के बीच झूलते हुए मैंने सीखा कि अगर हमारी ख़ुशी सफलता और असफलता पर निर्भर हुई तो हम निश्चित तौर पर जीवन भर दुखी ही रहने वाले हैं। इसलिये आज मैं हर हाल में खुश रहता हूँ।
इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि अब मैं जीवन में मिली असफलताओं के लिये भी ईश्वर का आभारी हूँ। वैसे दोस्तों, यही बात हमारे धर्मग्रन्थ महाभारत ने हमें सिखाई है। जब पांडव विपत्ति के दौर से गुजर रहे थे तब माता कुंती ने ईश्वर का धन्यवाद देते हुए कहा था,‘धन्यवाद प्रभु, मेरे जीवन में अगर यह दुःख ना आता, तो मै आपका स्मरण कैसे करती? मैं कहीं अपने सुखों में उलझकर दिग्भ्रमित ना हो जाऊँ, इसीलिए आपने मेरे ऊपर यह कृपा की होगी।’ ठीक इसी तरह की सीख हमें सुदामा जी से भी मिलती है। जब भी ग़रीबी या परिस्थिति के कारण सुदामा जी को भूखा रहना पड़ता था तो वे अपने प्रभि को धन्यवाद देते हुए कहते थे, ‘हे प्रभु! आपकी कृपा से आज मुझे एक बार फिर एकादशी जैसा पुण्य प्राप्त हो रहा है।’
याद रखियेगा दोस्तों, जीवन की प्रत्येक परिस्थिति हमें जीवन को बेहतर बनाने के लिये आवश्यक, कोई न कोई संदेश देती है। जी हाँ, यक़ीन मानियेगा इस जीवन में ऐसी कोई परिस्थिति ही नहीं है जिसे अवसर में ना बदला जा सके। ईश्वर हमें वही अनुभव देता है या हमारा सामना उन्हीं परेशानियों या चुनौतियों से करवाता है, जिनसे निपटने की क्षमता हमारे अंदर होती है। इसके पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें अपनी शक्तियाँ याद दिलवाना और इससे मिले अनुभव से हमारे जीवन को बेहतर बनाना होता है।
इस आधार पर कहा जाये तो हमारे जीवन के सभी सुख और दुख सिर्फ़ और सिर्फ़ इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम प्रतिदिन, प्रतिपल का सामना किस नज़रिये से करते हैं याने जीवन में सामने आई विभिन्न परिस्थितियों को किस दृष्टि से देखते हैं। उपरोक्त आधार पर अगर आप सोचेंगे तो पायेंगे कि निश्चित तौर पर सकारात्मक दृष्टि हमारे जीवन को सुखमय बना देती है। एक बार दोस्तों, इस पर विचार कर देखियेगा ज़रूर…
दोस्तों, अगर आप कर्मवीर हैं अर्थात् प्रतिदिन किन्हीं लक्ष्यों को पाने के लिये अपनी ओर से भरसक प्रयास कर रहे हैं; मेहनत कर रहे हैं तो यक़ीन मानियेगा कभी सफलता आपके कदम चूमेगी तो कभी असफलता आपको मुँह चिड़ायेगी; आपके आत्मविश्वास को डगमगा कर हौंसले को कम करेगी। लेकिन दोस्तों अगर आपने असफलता को सफलता की राह में मिलने वाली सीख मानना शुरू कर दिया तो आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है।
जी हाँ साथियों, मैंने जीवन से मिले अब तक के अनुभव से तो यही सीखा है। आज अगर मैं जीवन में पीछे पलटकर अपनी असफलताओं को देखता हूँ तो ऐसा लगता है, जैसे, वे सब सफलता तक पहुँचाने वाली सीढ़ीयाँ थी। उदाहरण के लिये , तमाम तकनीकी योग्यताएँ एवं ज्ञान होने के बाद भी जब कंप्यूटर के व्यवसाय में असफलता हाथ लगी तो मैंने जीवन में नज़रिये के महत्व को समझा और सीखा कि सफलता प्रतिभा की अपेक्षा दृष्टिकोण पर अधिक निर्भर करती है। इसी तरह कई बार सफलता-असफलता के बीच झूलते हुए मैंने सीखा कि अगर हमारी ख़ुशी सफलता और असफलता पर निर्भर हुई तो हम निश्चित तौर पर जीवन भर दुखी ही रहने वाले हैं। इसलिये आज मैं हर हाल में खुश रहता हूँ।
इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि अब मैं जीवन में मिली असफलताओं के लिये भी ईश्वर का आभारी हूँ। वैसे दोस्तों, यही बात हमारे धर्मग्रन्थ महाभारत ने हमें सिखाई है। जब पांडव विपत्ति के दौर से गुजर रहे थे तब माता कुंती ने ईश्वर का धन्यवाद देते हुए कहा था,‘धन्यवाद प्रभु, मेरे जीवन में अगर यह दुःख ना आता, तो मै आपका स्मरण कैसे करती? मैं कहीं अपने सुखों में उलझकर दिग्भ्रमित ना हो जाऊँ, इसीलिए आपने मेरे ऊपर यह कृपा की होगी।’ ठीक इसी तरह की सीख हमें सुदामा जी से भी मिलती है। जब भी ग़रीबी या परिस्थिति के कारण सुदामा जी को भूखा रहना पड़ता था तो वे अपने प्रभि को धन्यवाद देते हुए कहते थे, ‘हे प्रभु! आपकी कृपा से आज मुझे एक बार फिर एकादशी जैसा पुण्य प्राप्त हो रहा है।’
याद रखियेगा दोस्तों, जीवन की प्रत्येक परिस्थिति हमें जीवन को बेहतर बनाने के लिये आवश्यक, कोई न कोई संदेश देती है। जी हाँ, यक़ीन मानियेगा इस जीवन में ऐसी कोई परिस्थिति ही नहीं है जिसे अवसर में ना बदला जा सके। ईश्वर हमें वही अनुभव देता है या हमारा सामना उन्हीं परेशानियों या चुनौतियों से करवाता है, जिनसे निपटने की क्षमता हमारे अंदर होती है। इसके पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें अपनी शक्तियाँ याद दिलवाना और इससे मिले अनुभव से हमारे जीवन को बेहतर बनाना होता है।
इस आधार पर कहा जाये तो हमारे जीवन के सभी सुख और दुख सिर्फ़ और सिर्फ़ इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम प्रतिदिन, प्रतिपल का सामना किस नज़रिये से करते हैं याने जीवन में सामने आई विभिन्न परिस्थितियों को किस दृष्टि से देखते हैं। उपरोक्त आधार पर अगर आप सोचेंगे तो पायेंगे कि निश्चित तौर पर सकारात्मक दृष्टि हमारे जीवन को सुखमय बना देती है। एक बार दोस्तों, इस पर विचार कर देखियेगा ज़रूर…
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