लक्ष्य छोटा हो या बड़ा, तब तक हर हाल में हक़ीक़त में बदला जा सकता है, जब तक राह में मिलने वाली छोटी या बड़ी असफलता को आप अंतिम परिणाम मान कर, कर्म करना या मेहनत करना बंद ना कर दें। यही वह सबसे बड़ी सीख है जो हमें इसरो के चंद्रयान-३ के सफल मिशन से सीखने को मिलती है। जी हाँ साथियों, आज इस असंभव से लगने वाले मिशन, जिसमें हम पूर्व में असफल रहे थे, को इसरो ने सफल मिशन बनाने के साथ ब्रह्मांडीय विस्तार की शांति में, सदियों पुराना, हम में से हर किसी का सपना साकार किया है। हर भारतीय को गर्व करने का एक नायाब मौक़ा दिया है। इस कॉलम के माध्यम से मैं सबसे पहले तो टीम इसरो, सभी वैज्ञानिकों और परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इस अभियान में सहयोग करने वाले सभी लोगों को बधाई, आगामी योजनाओं के लिए शुभकामनाएँ और साथ ही सभी देशवासियों में गर्व आधारित राष्ट्रवाद पैदा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

दोस्तों, यह चार साल के अथक प्रयास का सफल नतीजा था, जो कुछ असफलताओं के बाद मिला था। यह एक ऐसा मिशन था जिस पर पूरी दुनिया ने साँस रोक कर अपनी नज़र गड़ा रखी थी। इस मिशन की सबसे बड़ी विशेषता महत्वाकांक्षा, प्रौद्योगिकी, समर्पण, दृढ़ इच्छाशक्ति, टीम भावना, मानवीय सरलता और अथक प्रयास जैसी कई विशेषताओं का मिश्रण था। अगर आप बारीकी से देखेंगे तो पायेंगे कि यह; सोच से योजना याने धरती से प्रक्षेपण से लेकर चंद्रमा पर लैंडिंग तक क्रियान्वयन और साथ ही निगरानी व डायनैमिक योजना का सम्मिश्रण था। जिसमें कई बार मानवीय दुस्साहस के साथ असंभव को संभव बनाया था। जिसने संपूर्ण मानव जगत को सितारों से आगे जाने के लिए प्रेरित किया। असल में यह मिशन हर पल असाधारण की ओर बढ़ते हुए कदम का एक प्रतीक था।

ऐसी एक सफलता दोस्तों, आपके जीवन को पूर्णता प्रदान कर सकती है। अगर आप इस सफल अभियान से सीखने का प्रयास करेंगे तो पायेंगे कि सबसे पहले सिर्फ़ एक छोटे से विचार को लक्ष्य बनाया। जो अपने आप में ही देखने-सुनने में असंभव सा लगता था। इसके पश्चात महीनों तक इस एक विचार पर गंभीरता पूर्वक रिसर्च की गई और फिर सावधानीपूर्वक छोटी से छोटी बात का ख़्याल रखते हुए योजना बनाई। योजना के विभिन्न पहलुओं के आधार पर टीम चुनी और फिर उन सभी को यह एहसास करवाया गया कि हम सब मिलकर इस असंभव से लक्ष्य को संभव बना सकते हैं और इतिहास रच सकते हैं। इसके पश्चात इस बड़े लक्ष्य को योजनाबद्ध तरीक़े से छोटे-छोटे चरणों याने लक्ष्यों में बाँटा गया और फिर उसकी ज़िम्मेदारी संबंधित टीम को दी गई। इसके पश्चात हर टीम ने बताई गई योजना के आधार पर अथक प्रयास शुरू किए और बताये गये छोटे लक्ष्यों को तय पैमाने पर समय सीमा में पूरा किया। हालाँकि इतना सब करने के बाद भी कुछ शुरुआती असफलताएँ इस टीम के हिस्से में आई जिसे उन्होंने सीख में बदला और फिर योजना में सुधार कर एक बार फिर से प्रयास किया। जिसका नतीजा साथियों हम सभी ने अगस्त २३, २०२३ की शाम ६ बजकर ४ मिनिट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान ३ को सफलता पूर्वक उतरते हुए देखा।

मेरी नज़र में यह जीत सिर्फ़ भारत की प्रौद्योगिकी सफलता का नतीजा नहीं है बल्कि यह तो उस अडिग भावना की भी है, जिसने इस अभियान को पल-पल आगे बढ़ाया। आप स्वयं सोच कर देखिए साथियों, १४ जुलाई २०२३ को ३ बजकर ३५ मिनिट पर आन्ध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च करने के बाद ४१ दिनों में ३ लाख ८४हज़ार किलोमीटर की यह यात्रा कितने पड़ावों और उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए प्लान और क्रियान्वित की गई होगी। जिसने चंद्रमा, जो कभी रात के आकाश में दूर, चांदी के गोले सा प्रतीत होता था, को अब मानव प्रयास का प्रतिबिंब बना दिया है, जहां भारत का झंडा शान से लहरा रहा है। यह एक राष्ट्र की अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक बन गया है, जिसमें सदियों से अछूते चंद्रमा पर मानवता की ज्ञान की खोज के पदचिह्नों की छाप को छोड़ा है। दोस्तों अगर आप जीवन में कोई बड़ा सपना सच करना चाहते हैं तो इस अभियान से सीख लें और उपरोक्त आधार पर अपने अभियान की योजना बनायें और सफल बनें। एक बार फिर इस अविस्मरणीय सफलता की ढेरों बधाइयाँ।
लक्ष्य छोटा हो या बड़ा, तब तक हर हाल में हक़ीक़त में बदला जा सकता है, जब तक राह में मिलने वाली छोटी या बड़ी असफलता को आप अंतिम परिणाम मान कर, कर्म करना या मेहनत करना बंद ना कर दें। यही वह सबसे बड़ी सीख है जो हमें इसरो के चंद्रयान-३ के सफल मिशन से सीखने को मिलती है। जी हाँ साथियों, आज इस असंभव से लगने वाले मिशन, जिसमें हम पूर्व में असफल रहे थे, को इसरो ने सफल मिशन बनाने के साथ ब्रह्मांडीय विस्तार की शांति में, सदियों पुराना, हम में से हर किसी का सपना साकार किया है। हर भारतीय को गर्व करने का एक नायाब मौक़ा दिया है। इस कॉलम के माध्यम से मैं सबसे पहले तो टीम इसरो, सभी वैज्ञानिकों और परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इस अभियान में सहयोग करने वाले सभी लोगों को बधाई, आगामी योजनाओं के लिए शुभकामनाएँ और साथ ही सभी देशवासियों में गर्व आधारित राष्ट्रवाद पैदा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। दोस्तों, यह चार साल के अथक प्रयास का सफल नतीजा था, जो कुछ असफलताओं के बाद मिला था। यह एक ऐसा मिशन था जिस पर पूरी दुनिया ने साँस रोक कर अपनी नज़र गड़ा रखी थी। इस मिशन की सबसे बड़ी विशेषता महत्वाकांक्षा, प्रौद्योगिकी, समर्पण, दृढ़ इच्छाशक्ति, टीम भावना, मानवीय सरलता और अथक प्रयास जैसी कई विशेषताओं का मिश्रण था। अगर आप बारीकी से देखेंगे तो पायेंगे कि यह; सोच से योजना याने धरती से प्रक्षेपण से लेकर चंद्रमा पर लैंडिंग तक क्रियान्वयन और साथ ही निगरानी व डायनैमिक योजना का सम्मिश्रण था। जिसमें कई बार मानवीय दुस्साहस के साथ असंभव को संभव बनाया था। जिसने संपूर्ण मानव जगत को सितारों से आगे जाने के लिए प्रेरित किया। असल में यह मिशन हर पल असाधारण की ओर बढ़ते हुए कदम का एक प्रतीक था। ऐसी एक सफलता दोस्तों, आपके जीवन को पूर्णता प्रदान कर सकती है। अगर आप इस सफल अभियान से सीखने का प्रयास करेंगे तो पायेंगे कि सबसे पहले सिर्फ़ एक छोटे से विचार को लक्ष्य बनाया। जो अपने आप में ही देखने-सुनने में असंभव सा लगता था। इसके पश्चात महीनों तक इस एक विचार पर गंभीरता पूर्वक रिसर्च की गई और फिर सावधानीपूर्वक छोटी से छोटी बात का ख़्याल रखते हुए योजना बनाई। योजना के विभिन्न पहलुओं के आधार पर टीम चुनी और फिर उन सभी को यह एहसास करवाया गया कि हम सब मिलकर इस असंभव से लक्ष्य को संभव बना सकते हैं और इतिहास रच सकते हैं। इसके पश्चात इस बड़े लक्ष्य को योजनाबद्ध तरीक़े से छोटे-छोटे चरणों याने लक्ष्यों में बाँटा गया और फिर उसकी ज़िम्मेदारी संबंधित टीम को दी गई। इसके पश्चात हर टीम ने बताई गई योजना के आधार पर अथक प्रयास शुरू किए और बताये गये छोटे लक्ष्यों को तय पैमाने पर समय सीमा में पूरा किया। हालाँकि इतना सब करने के बाद भी कुछ शुरुआती असफलताएँ इस टीम के हिस्से में आई जिसे उन्होंने सीख में बदला और फिर योजना में सुधार कर एक बार फिर से प्रयास किया। जिसका नतीजा साथियों हम सभी ने अगस्त २३, २०२३ की शाम ६ बजकर ४ मिनिट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान ३ को सफलता पूर्वक उतरते हुए देखा। मेरी नज़र में यह जीत सिर्फ़ भारत की प्रौद्योगिकी सफलता का नतीजा नहीं है बल्कि यह तो उस अडिग भावना की भी है, जिसने इस अभियान को पल-पल आगे बढ़ाया। आप स्वयं सोच कर देखिए साथियों, १४ जुलाई २०२३ को ३ बजकर ३५ मिनिट पर आन्ध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च करने के बाद ४१ दिनों में ३ लाख ८४हज़ार किलोमीटर की यह यात्रा कितने पड़ावों और उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए प्लान और क्रियान्वित की गई होगी। जिसने चंद्रमा, जो कभी रात के आकाश में दूर, चांदी के गोले सा प्रतीत होता था, को अब मानव प्रयास का प्रतिबिंब बना दिया है, जहां भारत का झंडा शान से लहरा रहा है। यह एक राष्ट्र की अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक बन गया है, जिसमें सदियों से अछूते चंद्रमा पर मानवता की ज्ञान की खोज के पदचिह्नों की छाप को छोड़ा है। दोस्तों अगर आप जीवन में कोई बड़ा सपना सच करना चाहते हैं तो इस अभियान से सीख लें और उपरोक्त आधार पर अपने अभियान की योजना बनायें और सफल बनें। एक बार फिर इस अविस्मरणीय सफलता की ढेरों बधाइयाँ।
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