दोस्तों, मेरी नज़र में रिस्क ना लेना ही जीवन की सबसे बड़ी रिस्क है। अपनी बात को मैं आपको एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। वर्ष १४९२ में नाविकों के एक समूह ने बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ एक साहसिक यात्रा करने का निर्णय लिया। नाविकों का पूरा का पूरा समूह इस साहसिक यात्रा के लिए काफ़ी उत्साहित और प्रसन्नचित्त था, सिवाय फ्रोज के, जो इस दुस्साहसी और ख़तरनाक यात्रा की योजना सुनकर ही बुरी तरह डर गया था। उसे लग रहा था कि अनावश्यक रूप से क्यों जीवन को मुश्किल में डालकर इस दुस्साहसी और ख़तरनाक यात्रा पर ज़ाया जाए? इसलिए उसने अन्य नाविकों के मन में भी समुद्री यात्रा के प्रति डर पैदा करने का निर्णय लिया।

एक दिन फ्रोज की मुलाक़ात पिजारो से हो गई। अपनी योजना के मुताबिक़ फ्रोज ने पिजारो के मन में डर पैदा करने का निर्णय लिया और उससे पूछा, ‘मैंने सुना है तुम्हारे पिता एक बहुत ही अच्छे नाविक थे।’ पिजारो ने हाँ में सर हिलाया तो उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘फिर उनकी मृत्यु कैसे हुई थी?’ दुखी स्वर में पिजारो बोला, ‘एक समुद्री यात्रा के दौरान, असल में उनका जहाज़ एक भीषण समुद्री तूफ़ान के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।’ फ्रोज ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘और तुम्हारे दादाजी की मृत्यु कैसे हुई थी?’ ‘मेरे दादा और परदादा दोनों भी समुद्र में डूबने के कारण मरे थे।’, पिजारो दुखी होते हुए बोला।

इतना सुनते ही फ्रोज कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘हद है पिजारो। तुम अपने अतीत, अपने अनुभव से भी सीखने को तैयार नहीं हो। जब तुम्हारे परिवार में इतने सारे लोगों की मृत्यु समुद्र में डूबने के कारण हुई है, तो फिर तुम यह अनावश्यक रिस्क क्यों लेना चाहते हो? मुझे तो तुम्हारी बुद्धि पर तरस आ रहा है। इतना सब कुछ होने के बाद भी तुम सुधरने को राज़ी नहीं हो और इस दुस्साहसी और ख़तरनाक यात्रा के लिए हाँ कर अपने जीवन को मुश्किल में डाल रहे हो।

इतना सुनते ही पिजारो समझ गया कि फ्रोज डर गया है और किसी ना किसी तरह यात्रा टालना चाहता है। उसने तुरंत ख़ुद को सँभालते हुए फ्रोज से पूछा, ‘अब तुम बताओ तुम्हारे पिता की मृत्यु कहाँ हुई थी?’ फ्रोज मुस्कुराते हुए बोला, ‘उन्होंने अपने बिस्तर पर बीड़ी आराम से अंतिम साँस ली थी।’ पिजारो ने फ्रोज को लगभग नज़रंदाज़ करते हुए अगला प्रश्न किया, ‘और तुम्हारे दादाजी की मृत्यु कैसे हुई थी?’ फ्रोज बड़े गर्व के साथ बोला, ‘प्रायः हमारे परिवार में सभी की मृत्यु अपने पलंग पर ही हुई है।’

शायद पिजारो इसी जवाब के इंतज़ार में था। उसने तुरंत गंभीर रुख़ अपनाते हुए कहा, ‘जब तुम्हारे सभी पूर्वज घर पर अपने बिस्तर पर आराम से मरे है, तो फिर तुम अपने घर जाने और बिस्तर पर सोने की मूर्खता क्यों करते हो? क्या तुम्हें वही गलती दोहराते हुए डर नहीं लगता?’ पासा उलटता और बात का रुख़ अपनी ओर मुड़ता देख फ्रोज का चेहरा एकदम उतर गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए? उसी पल पिजारो ने फ्रोज के कंधे पर हाथ रखा और बड़े प्यार से बोला, ‘मित्र, इस दुनिया में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है क्योंकि ऐसी कोई जगह ही नहीं है जहां रिस्क ना हो। इसलिए अगर तुम ज़िंदगी के असली मज़े लेना चाहते हो, तो साहस के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करो।

जी हाँ दोस्तों, बात तो एकदम सही है। इस दुनिया में ऐसी कोई चुनौती या परेशानी है ही नहीं, जिससे इंसान पार ना पा सके। बस ज़रूरत है तो आत्मविश्वास और हौसले की। याद रखियेगा, उपलब्धि जितनी बड़ी होगी; उसमें रिस्क या चुनौती भी उतनी ही बड़ी होगी। जब आप समस्याओं का सामना डट कर करते हैं तो वे छोटी हो जाती हैं और अगर आप उससे डर कर भागते हैं तो वो बड़ी हो जाती है। इसलिए अगर आप सफलता चाहते हैं तो हर स्थिति-परिस्थिति का सामना पूरे आत्मविश्वास, निडरता और हौसले के साथ डट कर करना शुरू कर दीजिए। वैसे भी वह सफलता ही क्या जो आसानी से मिल जाये। इसीलिए तो किसी ने क्या ख़ूब कहा है, ‘वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल न हो… नाविक की धैर्य कुशलता क्या, जब धारायें प्रतिकूल न हो !!!
दोस्तों, मेरी नज़र में रिस्क ना लेना ही जीवन की सबसे बड़ी रिस्क है। अपनी बात को मैं आपको एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। वर्ष १४९२ में नाविकों के एक समूह ने बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ एक साहसिक यात्रा करने का निर्णय लिया। नाविकों का पूरा का पूरा समूह इस साहसिक यात्रा के लिए काफ़ी उत्साहित और प्रसन्नचित्त था, सिवाय फ्रोज के, जो इस दुस्साहसी और ख़तरनाक यात्रा की योजना सुनकर ही बुरी तरह डर गया था। उसे लग रहा था कि अनावश्यक रूप से क्यों जीवन को मुश्किल में डालकर इस दुस्साहसी और ख़तरनाक यात्रा पर ज़ाया जाए? इसलिए उसने अन्य नाविकों के मन में भी समुद्री यात्रा के प्रति डर पैदा करने का निर्णय लिया। एक दिन फ्रोज की मुलाक़ात पिजारो से हो गई। अपनी योजना के मुताबिक़ फ्रोज ने पिजारो के मन में डर पैदा करने का निर्णय लिया और उससे पूछा, ‘मैंने सुना है तुम्हारे पिता एक बहुत ही अच्छे नाविक थे।’ पिजारो ने हाँ में सर हिलाया तो उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘फिर उनकी मृत्यु कैसे हुई थी?’ दुखी स्वर में पिजारो बोला, ‘एक समुद्री यात्रा के दौरान, असल में उनका जहाज़ एक भीषण समुद्री तूफ़ान के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।’ फ्रोज ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘और तुम्हारे दादाजी की मृत्यु कैसे हुई थी?’ ‘मेरे दादा और परदादा दोनों भी समुद्र में डूबने के कारण मरे थे।’, पिजारो दुखी होते हुए बोला। इतना सुनते ही फ्रोज कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘हद है पिजारो। तुम अपने अतीत, अपने अनुभव से भी सीखने को तैयार नहीं हो। जब तुम्हारे परिवार में इतने सारे लोगों की मृत्यु समुद्र में डूबने के कारण हुई है, तो फिर तुम यह अनावश्यक रिस्क क्यों लेना चाहते हो? मुझे तो तुम्हारी बुद्धि पर तरस आ रहा है। इतना सब कुछ होने के बाद भी तुम सुधरने को राज़ी नहीं हो और इस दुस्साहसी और ख़तरनाक यात्रा के लिए हाँ कर अपने जीवन को मुश्किल में डाल रहे हो। इतना सुनते ही पिजारो समझ गया कि फ्रोज डर गया है और किसी ना किसी तरह यात्रा टालना चाहता है। उसने तुरंत ख़ुद को सँभालते हुए फ्रोज से पूछा, ‘अब तुम बताओ तुम्हारे पिता की मृत्यु कहाँ हुई थी?’ फ्रोज मुस्कुराते हुए बोला, ‘उन्होंने अपने बिस्तर पर बीड़ी आराम से अंतिम साँस ली थी।’ पिजारो ने फ्रोज को लगभग नज़रंदाज़ करते हुए अगला प्रश्न किया, ‘और तुम्हारे दादाजी की मृत्यु कैसे हुई थी?’ फ्रोज बड़े गर्व के साथ बोला, ‘प्रायः हमारे परिवार में सभी की मृत्यु अपने पलंग पर ही हुई है।’ शायद पिजारो इसी जवाब के इंतज़ार में था। उसने तुरंत गंभीर रुख़ अपनाते हुए कहा, ‘जब तुम्हारे सभी पूर्वज घर पर अपने बिस्तर पर आराम से मरे है, तो फिर तुम अपने घर जाने और बिस्तर पर सोने की मूर्खता क्यों करते हो? क्या तुम्हें वही गलती दोहराते हुए डर नहीं लगता?’ पासा उलटता और बात का रुख़ अपनी ओर मुड़ता देख फ्रोज का चेहरा एकदम उतर गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए? उसी पल पिजारो ने फ्रोज के कंधे पर हाथ रखा और बड़े प्यार से बोला, ‘मित्र, इस दुनिया में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है क्योंकि ऐसी कोई जगह ही नहीं है जहां रिस्क ना हो। इसलिए अगर तुम ज़िंदगी के असली मज़े लेना चाहते हो, तो साहस के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करो। जी हाँ दोस्तों, बात तो एकदम सही है। इस दुनिया में ऐसी कोई चुनौती या परेशानी है ही नहीं, जिससे इंसान पार ना पा सके। बस ज़रूरत है तो आत्मविश्वास और हौसले की। याद रखियेगा, उपलब्धि जितनी बड़ी होगी; उसमें रिस्क या चुनौती भी उतनी ही बड़ी होगी। जब आप समस्याओं का सामना डट कर करते हैं तो वे छोटी हो जाती हैं और अगर आप उससे डर कर भागते हैं तो वो बड़ी हो जाती है। इसलिए अगर आप सफलता चाहते हैं तो हर स्थिति-परिस्थिति का सामना पूरे आत्मविश्वास, निडरता और हौसले के साथ डट कर करना शुरू कर दीजिए। वैसे भी वह सफलता ही क्या जो आसानी से मिल जाये। इसीलिए तो किसी ने क्या ख़ूब कहा है, ‘वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल न हो… नाविक की धैर्य कुशलता क्या, जब धारायें प्रतिकूल न हो !!!
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