दोस्तों, रामू आज बहुत खुश और मस्त था, जो कि मेरे लिये दुनिया के आठवें आश्चर्य से कम नहीं था। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह जीवन को देखने का उसका नज़रिया था। वह हर अच्छे से अच्छे कार्य में कुछ ना कुछ कमियाँ निकाल ही लेता था। उदाहरण के लिए मान लीजिए अचानक से कोई गाड़ी; आपकी गाड़ी के सामने आ गई और आपने समझदारी का परिचय देते हुए अपनी गाड़ी को ब्रेक लगा कर रोक लिया। अब रामू आपसे इस बात पर नाराज़ हो सकता है कि अगर ब्रेक लगाने पर गाड़ी नहीं रुकती और एक्सीडेंट हो जाता, तो आप क्या करते?

अब आप समझ ही सकते हैं क्यों मेरे लिये रामू को खुश देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। मैंने तुरंत रामू से ख़ुशी का कारण पूछा तो पता चला कि आज उसने एक नई गाड़ी ख़रीदी है। मैंने तुरंत रामू को बधाई दी और मन ही मन सोचने लगा कि कुछ घंटों बाद रामू वापस पहले जैसा ही हो जाएगा क्योंकि आज भी उसकी ख़ुशी किसी वस्तु और परिस्थिति पर निर्भर थी।

साथियों, याद रखियेगा जब तक आपकी ख़ुशी किसी व्यक्ति, वस्तु या विशेष परिस्थिति पर निर्भर करती है, तब तक वह तात्कालिक होती है। अर्थात् जैसे ही वह व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति बदलेगी आपकी ख़ुशी भी चली जायेगी। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जीवन में आप जब भी किसी विशेष कारण से खुश होंगे, उस कारण के मिटते ही आपको उतने ही दुख का अनुभव भी होगा। याने जो सुख किसी कारण से प्राप्त होता है, वह कारण के साथ ही समाप्त भी हो जाता है।

इसके विपरीत दोस्तों अगर आप अकारण ही खुश रहने का अभ्यास कर लें, तो आप अपने पूरे जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। अगर आप इसे आध्यात्मिक नज़रिए से देखेंगे तो मैं कहूँगा कि हम ईश्वर की संतान है और कोई भी अपनी संतान को परेशान और दुखी नहीं देख सकता है। इसलिए हमारे जीवन में घटने वाली हर घटना के पीछे ईश्वर की मंशा हमें खुश रखने की होती है। लेकिन कई बार हम अपने नज़रिए के कारण उस ख़ुशी के कारण को अपने दुख का कारण बना लेते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है साथियों, ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव रखना। अगर आप जीवन में घटने वाली हर घटना को ईश्वर को ही अर्पित कर दें याने हर हाल में यह कहना शुरू कर दें, ‘जैसी मेरे प्रभु की इच्छा!’ या ‘ईश्वर जो करता हैं अच्छे के लिये करता है!’ अर्थात् कुछ मिले तो भी हरि इच्छा और ना मिले तो भी हरि इच्छा। यह भाव आपके अंदर दुख की उत्पत्ति नहीं होने देगा और आपको अकारण ही, हर हाल में, हर समय प्रसन्नता और आनंद की अनुभूति देगा।

दोस्तों, यक़ीन मानियेगा उपरोक्त बात मैं आपको अपने व्यक्तिगत अनुभव से बता रहा हूँ। मैंने अपने जीवन में ऐसी कई परिस्थितियों का सामना किया है जब सब कुछ ख़त्म नज़र आ रहा था। लेकिन बीतते समय और बदलते परिणाम के साथ मुझे एहसास हुआ कि जो कुछ घटा था वह मेरे जीवन को बेहतर बनाने के लिए ही घटा था। इसीलिए ‘आप कैसे हैं पूछने पर हर बार मेरा जवाब ‘मैं खुश हूँ!’ रहता है।

वैसे दोस्तों, अकारण खुश या आनंदित रहने का एक और बड़ा फ़ायदा है। यह भी इत्र की तरह अपने आप फैलने याने एक से दूसरे तक अपने आप ही पहुँचने वाली होती है। अर्थात् अगर आप अकारण ही खुश और आनंद में रहते हैं तो आप अपने आस-पास मौजूद लोगों को भी अकारण ही ख़ुश और आनंदित बना देते हैं। इसलिए प्रतिदिन खुशी का इत्र अपने ऊपर छिड़कते रहें और स्वयं के साथ दूसरों को भी महकाते रहें।
दोस्तों, रामू आज बहुत खुश और मस्त था, जो कि मेरे लिये दुनिया के आठवें आश्चर्य से कम नहीं था। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह जीवन को देखने का उसका नज़रिया था। वह हर अच्छे से अच्छे कार्य में कुछ ना कुछ कमियाँ निकाल ही लेता था। उदाहरण के लिए मान लीजिए अचानक से कोई गाड़ी; आपकी गाड़ी के सामने आ गई और आपने समझदारी का परिचय देते हुए अपनी गाड़ी को ब्रेक लगा कर रोक लिया। अब रामू आपसे इस बात पर नाराज़ हो सकता है कि अगर ब्रेक लगाने पर गाड़ी नहीं रुकती और एक्सीडेंट हो जाता, तो आप क्या करते? अब आप समझ ही सकते हैं क्यों मेरे लिये रामू को खुश देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। मैंने तुरंत रामू से ख़ुशी का कारण पूछा तो पता चला कि आज उसने एक नई गाड़ी ख़रीदी है। मैंने तुरंत रामू को बधाई दी और मन ही मन सोचने लगा कि कुछ घंटों बाद रामू वापस पहले जैसा ही हो जाएगा क्योंकि आज भी उसकी ख़ुशी किसी वस्तु और परिस्थिति पर निर्भर थी। साथियों, याद रखियेगा जब तक आपकी ख़ुशी किसी व्यक्ति, वस्तु या विशेष परिस्थिति पर निर्भर करती है, तब तक वह तात्कालिक होती है। अर्थात् जैसे ही वह व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति बदलेगी आपकी ख़ुशी भी चली जायेगी। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जीवन में आप जब भी किसी विशेष कारण से खुश होंगे, उस कारण के मिटते ही आपको उतने ही दुख का अनुभव भी होगा। याने जो सुख किसी कारण से प्राप्त होता है, वह कारण के साथ ही समाप्त भी हो जाता है। इसके विपरीत दोस्तों अगर आप अकारण ही खुश रहने का अभ्यास कर लें, तो आप अपने पूरे जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। अगर आप इसे आध्यात्मिक नज़रिए से देखेंगे तो मैं कहूँगा कि हम ईश्वर की संतान है और कोई भी अपनी संतान को परेशान और दुखी नहीं देख सकता है। इसलिए हमारे जीवन में घटने वाली हर घटना के पीछे ईश्वर की मंशा हमें खुश रखने की होती है। लेकिन कई बार हम अपने नज़रिए के कारण उस ख़ुशी के कारण को अपने दुख का कारण बना लेते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है साथियों, ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव रखना। अगर आप जीवन में घटने वाली हर घटना को ईश्वर को ही अर्पित कर दें याने हर हाल में यह कहना शुरू कर दें, ‘जैसी मेरे प्रभु की इच्छा!’ या ‘ईश्वर जो करता हैं अच्छे के लिये करता है!’ अर्थात् कुछ मिले तो भी हरि इच्छा और ना मिले तो भी हरि इच्छा। यह भाव आपके अंदर दुख की उत्पत्ति नहीं होने देगा और आपको अकारण ही, हर हाल में, हर समय प्रसन्नता और आनंद की अनुभूति देगा। दोस्तों, यक़ीन मानियेगा उपरोक्त बात मैं आपको अपने व्यक्तिगत अनुभव से बता रहा हूँ। मैंने अपने जीवन में ऐसी कई परिस्थितियों का सामना किया है जब सब कुछ ख़त्म नज़र आ रहा था। लेकिन बीतते समय और बदलते परिणाम के साथ मुझे एहसास हुआ कि जो कुछ घटा था वह मेरे जीवन को बेहतर बनाने के लिए ही घटा था। इसीलिए ‘आप कैसे हैं पूछने पर हर बार मेरा जवाब ‘मैं खुश हूँ!’ रहता है। वैसे दोस्तों, अकारण खुश या आनंदित रहने का एक और बड़ा फ़ायदा है। यह भी इत्र की तरह अपने आप फैलने याने एक से दूसरे तक अपने आप ही पहुँचने वाली होती है। अर्थात् अगर आप अकारण ही खुश और आनंद में रहते हैं तो आप अपने आस-पास मौजूद लोगों को भी अकारण ही ख़ुश और आनंदित बना देते हैं। इसलिए प्रतिदिन खुशी का इत्र अपने ऊपर छिड़कते रहें और स्वयं के साथ दूसरों को भी महकाते रहें।
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