दोस्तों, इस दुनिया में जितना ज़रूरी मित्रों का होना है उतना ही ज़रूरी आलोचकों का होना भी है क्योंकि सही मायने में वे ही आपको जीवन में आगे बढ़ाते हैं। इस बात का एहसास मुझे हाल ही की अपनी व्यवसायिक यात्रा के दौरान हुआ। हालाँकि सामने वाले सज्जन के नाम की गरिमा बचाये रखने के लिए यहाँ मैं आपसे उनका नाम साझा नहीं कर रहा हूँ लेकिन एक कहानी के माध्यम से अपनी बात समझाने का प्रयास करता हूँ।

एक बार राजू कार्यालय जाते समय रास्ते में पड़ने वाले भगवान के मंदिर में रुककर बड़ी अजीब सी प्रार्थना करते हुए बोलता है, ‘प्रभु, आज कृपा करके मुझे मेरे सभी दुश्मनों और आलोचकों से मिलवा दो, आपकी बड़ी कृपा रहेगी।’ राजू का एक साथी उसकी प्रार्थना सुन चौंक जाता है और राजू को टोकते हुए कहता है, ‘मित्र, यह क्या अजीब सी प्रार्थना कर रहे हो? जहाँ तक मुझे याद है आज शाम को क्लाइंट के साथ होने वाली मीटिंग तुम्हारा भविष्य तय करेगी। ऐसे में दुश्मनों और आलोचकों से मिलने की प्रार्थना करना कुछ समझ नहीं आया।’ मित्र की बात सुन राजू सिर्फ़ मुस्कुराया और बोला, ‘तुम अभी समझ नहीं पाओगे। इस विषय में हम शाम को बात करेंगे।’

उस दिन शायद भगवान ने राजू की प्रार्थना उसी पल क़बूल कर ली। मंदिर से निकलकर ऑफिस जाते समय राजू गलती से सड़क किनारे सामान रख बैठे एक व्यक्ति से टकरा गया। वह व्यक्ति एकदम से भड़कते हुए राजू से बोला, ‘अरे आँख वाले अंधे ज़रा नीचे भी देख कर चल ले। हमेशा हवा में मत उड़ा कर!’ राजू ने तुरंत उससे माफ़ी माँगी और आगे बढ़ गया। अभी वह कार्यालय पहुँचा ही था कि नीचे ही उसकी मुलाक़ात अपने प्रतिद्वंदी साथी कर्मचारी से हो गई। वह उसे ताने मारते हुए बोला, ‘आ गये बड़े साहब। पता नहीं क्या देख कर बॉस ने इसे प्रमोट कर दिया। ना तो इनके जुते कभी साफ़ रहते हैं और ना ही टाई ढंग से बंधी रहती है।’ राजू बात सुन मुस्कुराया और आगे बढ़ गया।

कार्यालय में अपने डिपार्टमेंट में जाते समय राजू ने देखा कि एक अन्य कर्मचारी के पास से गुजरते समय उसने मुँह बनाकर अपनी नाक बंद कर ली और बुदबुदाते हुए धीमे से बोला, ‘पता नहीं क्यों लोग इस गर्मी के मौसम में बिना डियो लगाये आ जाते हैं, देखो इसके शरीर से कितनी बदबू आ रही है।’ राजू उसकी बात पर बिना प्रतिक्रिया दिये आगे बढ़ जाता है। तभी उसका एक साथी उसे छेड़ते हुए कहता है, ‘पहले ही समझाया था तुझे, अपना विभाग मत बदल। अब फँस गया ना सेल्स मीटिंग के चक्कर में। फैक्ट्स तो तुझे याद नहीं रहते कैसे क्लाइंट को प्रेज़ेंटेशन देगा?’ राजू ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने केबिन में पहुँच गया।

इसके पश्चात राजू ने सबसे पहले आज घर से कार्यालय तक आते समय मिले सभी आलोचकों और विरोधियों की बातों को याद करा और उसके अनुसार ख़ुद में सुधार करने लगा। सबसे पहले उसने अपने जूते साफ़ किए, फिर अपनी टाई ठीक करी और उसके बाद डियो लगाया और फैक्ट्स याद करने में जुट गया। तय समय पर प्रेज़ेंटेशन रूम में पहुँचते ही उसे सबसे पहले मिले व्यक्ति की याद आती है और वो क्लाइंट व क्लाइंट के साथ आये उसके अधीनस्थ का भी अभिवादन करते हुए फैक्ट्स के साथ एक ज़बरदस्त प्रेज़ेंटेशन देता है और एक ही बार में अपनी डील फाइनल कर लेता है। उस दिन कार्यालय से लौटते समय वह अपने मित्र से कहता है देखा तुमने मेरी प्रार्थना का कमाल? प्रभु ने सुबह-सुबह ही सभी दुश्मनों और आलोचकों से मिलवा कर मुझे बेहतर बनने में मदद करी जिसके कारण मैं आज डील पक्की कर पाया।

आशा करता हूँ साथियों, आप इस क़िस्से में छुपे मूल मैसेज को समझ गये होंगे कि क्यों मैंने पूर्व में कहा था कि ‘इस दुनिया में सफल होने के लिए जितना ज़रूरी मित्रों का होना है, उतना ही ज़रूरी आलोचकों का होना है।’ सामान्य तौर पर हमारे सभी मित्र हमें पसंद करते हैं इसीलिए वे हमारी तारीफ़ करते हैं, जो निश्चित तौर पर हमें पसंद आती है। लेकिन दोस्तों तारीफ़ सुनना हमें बेहतर बनने का मौक़ा नहीं देता। इसके विपरीत हमारे विरोधी, दुश्मन या आलोचक हमारी निंदा करते हैं, हमारा ध्यान हमारी कमियों की ओर ले जाते हैं। वे कई बार हमारी टांग खींच हतोत्साहित करते हैं। लेकिन अगर हम सचेत रहते हुए उनकी निंदा सुनते हैं तो वह हमें निखारने का मौक़ा देती है।

इसलिए साथियों, आज नहीं अभी से ही ऐसे लोगों से परेशान होने के स्थान पर फ़ायदा उठाना शुरू कीजिए, जैसा मैंने हाल ही की अपनी व्यवसायिक यात्रा के दौरान किया था। याद रखियेगा, कई बार हमारे विरोधी हमें ऐसी सीख दे जाते हैं, जो हमारे अपने हमें नहीं दे पाते हैं और हम उनकी सिखों की वजह से जीवन में बड़ी सफलता पा पाते हैं। इसीलिए कहा गया है, ‘निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’
दोस्तों, इस दुनिया में जितना ज़रूरी मित्रों का होना है उतना ही ज़रूरी आलोचकों का होना भी है क्योंकि सही मायने में वे ही आपको जीवन में आगे बढ़ाते हैं। इस बात का एहसास मुझे हाल ही की अपनी व्यवसायिक यात्रा के दौरान हुआ। हालाँकि सामने वाले सज्जन के नाम की गरिमा बचाये रखने के लिए यहाँ मैं आपसे उनका नाम साझा नहीं कर रहा हूँ लेकिन एक कहानी के माध्यम से अपनी बात समझाने का प्रयास करता हूँ। एक बार राजू कार्यालय जाते समय रास्ते में पड़ने वाले भगवान के मंदिर में रुककर बड़ी अजीब सी प्रार्थना करते हुए बोलता है, ‘प्रभु, आज कृपा करके मुझे मेरे सभी दुश्मनों और आलोचकों से मिलवा दो, आपकी बड़ी कृपा रहेगी।’ राजू का एक साथी उसकी प्रार्थना सुन चौंक जाता है और राजू को टोकते हुए कहता है, ‘मित्र, यह क्या अजीब सी प्रार्थना कर रहे हो? जहाँ तक मुझे याद है आज शाम को क्लाइंट के साथ होने वाली मीटिंग तुम्हारा भविष्य तय करेगी। ऐसे में दुश्मनों और आलोचकों से मिलने की प्रार्थना करना कुछ समझ नहीं आया।’ मित्र की बात सुन राजू सिर्फ़ मुस्कुराया और बोला, ‘तुम अभी समझ नहीं पाओगे। इस विषय में हम शाम को बात करेंगे।’ उस दिन शायद भगवान ने राजू की प्रार्थना उसी पल क़बूल कर ली। मंदिर से निकलकर ऑफिस जाते समय राजू गलती से सड़क किनारे सामान रख बैठे एक व्यक्ति से टकरा गया। वह व्यक्ति एकदम से भड़कते हुए राजू से बोला, ‘अरे आँख वाले अंधे ज़रा नीचे भी देख कर चल ले। हमेशा हवा में मत उड़ा कर!’ राजू ने तुरंत उससे माफ़ी माँगी और आगे बढ़ गया। अभी वह कार्यालय पहुँचा ही था कि नीचे ही उसकी मुलाक़ात अपने प्रतिद्वंदी साथी कर्मचारी से हो गई। वह उसे ताने मारते हुए बोला, ‘आ गये बड़े साहब। पता नहीं क्या देख कर बॉस ने इसे प्रमोट कर दिया। ना तो इनके जुते कभी साफ़ रहते हैं और ना ही टाई ढंग से बंधी रहती है।’ राजू बात सुन मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। कार्यालय में अपने डिपार्टमेंट में जाते समय राजू ने देखा कि एक अन्य कर्मचारी के पास से गुजरते समय उसने मुँह बनाकर अपनी नाक बंद कर ली और बुदबुदाते हुए धीमे से बोला, ‘पता नहीं क्यों लोग इस गर्मी के मौसम में बिना डियो लगाये आ जाते हैं, देखो इसके शरीर से कितनी बदबू आ रही है।’ राजू उसकी बात पर बिना प्रतिक्रिया दिये आगे बढ़ जाता है। तभी उसका एक साथी उसे छेड़ते हुए कहता है, ‘पहले ही समझाया था तुझे, अपना विभाग मत बदल। अब फँस गया ना सेल्स मीटिंग के चक्कर में। फैक्ट्स तो तुझे याद नहीं रहते कैसे क्लाइंट को प्रेज़ेंटेशन देगा?’ राजू ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने केबिन में पहुँच गया। इसके पश्चात राजू ने सबसे पहले आज घर से कार्यालय तक आते समय मिले सभी आलोचकों और विरोधियों की बातों को याद करा और उसके अनुसार ख़ुद में सुधार करने लगा। सबसे पहले उसने अपने जूते साफ़ किए, फिर अपनी टाई ठीक करी और उसके बाद डियो लगाया और फैक्ट्स याद करने में जुट गया। तय समय पर प्रेज़ेंटेशन रूम में पहुँचते ही उसे सबसे पहले मिले व्यक्ति की याद आती है और वो क्लाइंट व क्लाइंट के साथ आये उसके अधीनस्थ का भी अभिवादन करते हुए फैक्ट्स के साथ एक ज़बरदस्त प्रेज़ेंटेशन देता है और एक ही बार में अपनी डील फाइनल कर लेता है। उस दिन कार्यालय से लौटते समय वह अपने मित्र से कहता है देखा तुमने मेरी प्रार्थना का कमाल? प्रभु ने सुबह-सुबह ही सभी दुश्मनों और आलोचकों से मिलवा कर मुझे बेहतर बनने में मदद करी जिसके कारण मैं आज डील पक्की कर पाया। आशा करता हूँ साथियों, आप इस क़िस्से में छुपे मूल मैसेज को समझ गये होंगे कि क्यों मैंने पूर्व में कहा था कि ‘इस दुनिया में सफल होने के लिए जितना ज़रूरी मित्रों का होना है, उतना ही ज़रूरी आलोचकों का होना है।’ सामान्य तौर पर हमारे सभी मित्र हमें पसंद करते हैं इसीलिए वे हमारी तारीफ़ करते हैं, जो निश्चित तौर पर हमें पसंद आती है। लेकिन दोस्तों तारीफ़ सुनना हमें बेहतर बनने का मौक़ा नहीं देता। इसके विपरीत हमारे विरोधी, दुश्मन या आलोचक हमारी निंदा करते हैं, हमारा ध्यान हमारी कमियों की ओर ले जाते हैं। वे कई बार हमारी टांग खींच हतोत्साहित करते हैं। लेकिन अगर हम सचेत रहते हुए उनकी निंदा सुनते हैं तो वह हमें निखारने का मौक़ा देती है। इसलिए साथियों, आज नहीं अभी से ही ऐसे लोगों से परेशान होने के स्थान पर फ़ायदा उठाना शुरू कीजिए, जैसा मैंने हाल ही की अपनी व्यवसायिक यात्रा के दौरान किया था। याद रखियेगा, कई बार हमारे विरोधी हमें ऐसी सीख दे जाते हैं, जो हमारे अपने हमें नहीं दे पाते हैं और हम उनकी सिखों की वजह से जीवन में बड़ी सफलता पा पाते हैं। इसीलिए कहा गया है, ‘निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’
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