दोस्तों, किसी ने सही कहा है, ‘यह दुनिया एक बाज़ार है, जिसमें सब-कुछ बिकता है।’ जी हाँ साथियों, सही सुना आपने, आज कल तो बाज़ार में ‘सम्मान’ भी धड़ल्ले से बिक रहा है और तो और इसे ख़रीदने वाले बड़े शानदार तरीक़े से इस समाज, इस दुनिया में सम्मानित भी किए जा रहे हैं। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी ३ घटनाओं से समझाने का प्रयास करता हूँ।

पहली घटना - अपने लेख, ब्लॉग, ट्रेनिंग और एशिया बुक रिकॉर्ड होल्डर रेडियो शो की बढ़ती लोकप्रियता के कारण पिछले ६ माह में मेरे पास विभिन्न सम्मानों के लिए चयन होने संबंधी कई मेल और फ़ोन आये। जब मैंने उनसे इस संदर्भ में बात करी तो मुझे पता चला कि इन सभी सम्मान की कुछ ना कुछ क़ीमत है। कोई इसे नॉमिनेशन के नाम पर, तो कोई पी.आर. सर्विस, तो कोई सम्मान समारोह के बाद आयोजित किए जाने वाले बड़े डिनर की क़ीमत बता रहा है।

दूसरी घटना - अवार्ड की ही तरह पिछले कुछ माह में मेरे पास मानद डॉक्टोरेट के लिए भी कई मेल और फ़ोन आये। अर्थात् अब आप बाज़ार से मानद डॉक्टोरेट की डिग्री भी ख़रीद सकते हैं और उसके बाद अपने नाम के आगे बड़े ‘सम्मान’ के साथ ‘डॉ’ लिख सकते हैं।

तीसरी घटना - हाल ही में मुझे एक कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में एक ऐसे सज्जन उपस्थित थे जिन्हें मैं उनके खट कर्मों की वजह से पिछले कई सालों से जानता था। उनके रूप या यूँ कहूँ जीवन में आये इस सकारात्मक बदलाव को देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन मेरी यह ख़ुशी उस वक़्त काफिर हो गई जब मेरे वक्तव्य के पूर्व उन्होंने बड़े धीमे स्वर में मुझसे कहा, ‘निर्मल, तुम अगर यहाँ मुझे मेरे नाम के स्थान पर भाई जी या भाई साहब कहकर संबोधित करोगे तो मुझे अच्छा लगेगा। कई सालों की मेहनत से यह इज्जत कमाई है।’ उस वक़्त तो मैंने मुस्कुराहट के साथ उन्हें रिलैक्स कर दिया, लेकिन कार्यक्रम के बाद मुझे पता चला कि आजकल वे प्रॉपर्टी बाज़ार से कमाये गये पैसों से बाज़ार में इस तरह का सम्मान ख़रीदते हैं।

आगे बढ़ने से पहले साथियों मैं आपको बता दूँ कि सम्मान की भूख होना सामान्य मानवीय स्वभाव या आवश्यकताओं का हिस्सा है। अगर आप इसे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो की वर्ष १९४३ में साइकोलॉजिकल रिव्यू पत्रिका में प्रकाशित हुए पेपर ‘ए थ्योरी ऑफ ह्यूमन मोटिवेशन’ के एक हिस्से जिसे हम ‘थ्योरी ऑफ़ हेरारकी ऑफ़ नीड्स’ याने ‘मास्लो का आवश्यकताओं के पदानुक्रम का सिद्धांत’ भी कहते हैं, के आधार पर देखेंगे तो पायेंगे कि सामान्य इंसान की जरूरतें और प्रेरणा आवश्यकताओं की पांच बुनियादी श्रेणियों से प्रेरित होते हैं; १) शारीरिक २) सुरक्षा ३) प्रेम ४) सम्मान और ५) आत्म-बोध। इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक मनुष्य उपरोक्त क्रम में संतुष्टि प्राप्त करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ता है। अर्थात् उपरोक्त पदानुक्रम से हम यह समझ सकते हैं कि मानव व्यवहार के संदर्भ में प्रयास और प्रेरणा कैसे कार्य करते हैं।

इस आधार पर देखा जाये तो सम्मान की चाह स्वाभाविक है, लेकिन सम्मान को कभी छीन या ख़रीदकर नहीं पाया जा सकता है, उसे तो आपको कमाना ही पड़ता है। अर्थात् सम्मान तो आप अपने अच्छे स्वभाव, अच्छे व्यवहार और अच्छे कर्मों द्वारा ही कमा सकते हैं। अगर मेरी बात से सहमत ना हों तो किसी भी श्रेष्ठ और सम्मानित व्यक्ति को याद कर देख लीजिए। इस आधार पर कहा जाये तो ख़रीद कर सम्मानित होना और सही मायने में सम्मान अर्जित करने में बहुत अंतर है। अर्थात् आप सम्मान पाने योग्य कार्य करके ही इसके वास्तविक अधिकारी बन सकते हैं। इसलिए दोस्तों, जीवन में सदैव श्रेष्ठ पथ पर गतिमान रहें, स्वभाव में सौम्यता लायें और लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें। फिर देखियेगा आपको कभी सम्मान ना तो माँगना पड़ेगा और ना ही ख़रीदना पड़ेगा, वह तो आपको अपने आप ही मिलने लगेगा।
दोस्तों, किसी ने सही कहा है, ‘यह दुनिया एक बाज़ार है, जिसमें सब-कुछ बिकता है।’ जी हाँ साथियों, सही सुना आपने, आज कल तो बाज़ार में ‘सम्मान’ भी धड़ल्ले से बिक रहा है और तो और इसे ख़रीदने वाले बड़े शानदार तरीक़े से इस समाज, इस दुनिया में सम्मानित भी किए जा रहे हैं। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी ३ घटनाओं से समझाने का प्रयास करता हूँ। पहली घटना - अपने लेख, ब्लॉग, ट्रेनिंग और एशिया बुक रिकॉर्ड होल्डर रेडियो शो की बढ़ती लोकप्रियता के कारण पिछले ६ माह में मेरे पास विभिन्न सम्मानों के लिए चयन होने संबंधी कई मेल और फ़ोन आये। जब मैंने उनसे इस संदर्भ में बात करी तो मुझे पता चला कि इन सभी सम्मान की कुछ ना कुछ क़ीमत है। कोई इसे नॉमिनेशन के नाम पर, तो कोई पी.आर. सर्विस, तो कोई सम्मान समारोह के बाद आयोजित किए जाने वाले बड़े डिनर की क़ीमत बता रहा है। दूसरी घटना - अवार्ड की ही तरह पिछले कुछ माह में मेरे पास मानद डॉक्टोरेट के लिए भी कई मेल और फ़ोन आये। अर्थात् अब आप बाज़ार से मानद डॉक्टोरेट की डिग्री भी ख़रीद सकते हैं और उसके बाद अपने नाम के आगे बड़े ‘सम्मान’ के साथ ‘डॉ’ लिख सकते हैं। तीसरी घटना - हाल ही में मुझे एक कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में एक ऐसे सज्जन उपस्थित थे जिन्हें मैं उनके खट कर्मों की वजह से पिछले कई सालों से जानता था। उनके रूप या यूँ कहूँ जीवन में आये इस सकारात्मक बदलाव को देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन मेरी यह ख़ुशी उस वक़्त काफिर हो गई जब मेरे वक्तव्य के पूर्व उन्होंने बड़े धीमे स्वर में मुझसे कहा, ‘निर्मल, तुम अगर यहाँ मुझे मेरे नाम के स्थान पर भाई जी या भाई साहब कहकर संबोधित करोगे तो मुझे अच्छा लगेगा। कई सालों की मेहनत से यह इज्जत कमाई है।’ उस वक़्त तो मैंने मुस्कुराहट के साथ उन्हें रिलैक्स कर दिया, लेकिन कार्यक्रम के बाद मुझे पता चला कि आजकल वे प्रॉपर्टी बाज़ार से कमाये गये पैसों से बाज़ार में इस तरह का सम्मान ख़रीदते हैं। आगे बढ़ने से पहले साथियों मैं आपको बता दूँ कि सम्मान की भूख होना सामान्य मानवीय स्वभाव या आवश्यकताओं का हिस्सा है। अगर आप इसे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो की वर्ष १९४३ में साइकोलॉजिकल रिव्यू पत्रिका में प्रकाशित हुए पेपर ‘ए थ्योरी ऑफ ह्यूमन मोटिवेशन’ के एक हिस्से जिसे हम ‘थ्योरी ऑफ़ हेरारकी ऑफ़ नीड्स’ याने ‘मास्लो का आवश्यकताओं के पदानुक्रम का सिद्धांत’ भी कहते हैं, के आधार पर देखेंगे तो पायेंगे कि सामान्य इंसान की जरूरतें और प्रेरणा आवश्यकताओं की पांच बुनियादी श्रेणियों से प्रेरित होते हैं; १) शारीरिक २) सुरक्षा ३) प्रेम ४) सम्मान और ५) आत्म-बोध। इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक मनुष्य उपरोक्त क्रम में संतुष्टि प्राप्त करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ता है। अर्थात् उपरोक्त पदानुक्रम से हम यह समझ सकते हैं कि मानव व्यवहार के संदर्भ में प्रयास और प्रेरणा कैसे कार्य करते हैं। इस आधार पर देखा जाये तो सम्मान की चाह स्वाभाविक है, लेकिन सम्मान को कभी छीन या ख़रीदकर नहीं पाया जा सकता है, उसे तो आपको कमाना ही पड़ता है। अर्थात् सम्मान तो आप अपने अच्छे स्वभाव, अच्छे व्यवहार और अच्छे कर्मों द्वारा ही कमा सकते हैं। अगर मेरी बात से सहमत ना हों तो किसी भी श्रेष्ठ और सम्मानित व्यक्ति को याद कर देख लीजिए। इस आधार पर कहा जाये तो ख़रीद कर सम्मानित होना और सही मायने में सम्मान अर्जित करने में बहुत अंतर है। अर्थात् आप सम्मान पाने योग्य कार्य करके ही इसके वास्तविक अधिकारी बन सकते हैं। इसलिए दोस्तों, जीवन में सदैव श्रेष्ठ पथ पर गतिमान रहें, स्वभाव में सौम्यता लायें और लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें। फिर देखियेगा आपको कभी सम्मान ना तो माँगना पड़ेगा और ना ही ख़रीदना पड़ेगा, वह तो आपको अपने आप ही मिलने लगेगा।
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