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  • मेरी सोच से परे भी है सोच कोई

    जो झकझोरती है चेतना को ...

    मेरे दर्द से परे भी है दर्द कोई

    जो गहराई देता है हृदय की वेदना को...

    मेरे भावों से परे भी है भाव कोई

    जो परिपूर्णता से भरता है संवेदना को...

    तुम ज़रा इंतज़ार करो जख़्मों के भर जाने का

    पैने करो नखों को अपने यदि इन्हें कुरेदना हो...
    "मोरनी"
    मेरी सोच से परे भी है सोच कोई जो झकझोरती है चेतना को ... मेरे दर्द से परे भी है दर्द कोई जो गहराई देता है हृदय की वेदना को... मेरे भावों से परे भी है भाव कोई जो परिपूर्णता से भरता है संवेदना को... तुम ज़रा इंतज़ार करो जख़्मों के भर जाने का पैने करो नखों को अपने यदि इन्हें कुरेदना हो... "मोरनी"
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  • सच कहूँ
    तो
    जो अनकहा रहा
    तुम्हारे मेरे दरमियाँ

    वही तो अहम् रहा
    वही तो है वही तो था
    सहेज लिया

    तुमने भी मैनें भी
    अब कहने को
    क्या बाकी रहा?

    क्या यही वह प्रेम है
    मीरा का विष
    जो आख़िर
    अमृत हुआ...

    कुछ तो था
    कुछ तो है
    कुछ तो होगा
    तेरे मेरे दरमियाँ...
    "मोरनी"
    सच कहूँ तो जो अनकहा रहा तुम्हारे मेरे दरमियाँ वही तो अहम् रहा वही तो है वही तो था सहेज लिया तुमने भी मैनें भी अब कहने को क्या बाकी रहा? क्या यही वह प्रेम है मीरा का विष जो आख़िर अमृत हुआ... कुछ तो था कुछ तो है कुछ तो होगा तेरे मेरे दरमियाँ... "मोरनी"
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  • रात की मुट्ठी में एक सुबह भी है
    शर्त ये है पहले अंधेरा तो देख।।
    "मोरनी"
    रात की मुट्ठी में एक सुबह भी है शर्त ये है पहले अंधेरा तो देख।। "मोरनी"
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  • Yes....I am crazy

    Because I am not crazy...

    About the name....fame....

    Yes....I am crazy

    Because I am not part of your game....

    I am crazy for sure

    Because I expected you to be sane

    I decide to be me .... even if forever

    In your opinion crazy ... I remain !
    "मोरनी"
    Yes....I am crazy Because I am not crazy... About the name....fame.... Yes....I am crazy Because I am not part of your game.... I am crazy for sure Because I expected you to be sane I decide to be me .... even if forever In your opinion crazy ... I remain ! "मोरनी"
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  • हर आदमी के अंदर
    एक गाँव होता है,
    जो कभी शहर
    नहीं होना चाहता !!
    हर आदमी के अंदर एक गाँव होता है, जो कभी शहर नहीं होना चाहता !! ❤️❤️
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  • आजकल के अधिकांश लड़के नौकरी लगने के तुरंत बाद शादी करके दुलहन को सीधे नौकरी पर ले जाते हैं तथा सारा पढ़ाई का कर्ज , खेती का काम सब झंझट उन माता पिता के पास छोड़ जाते हैं जो अपनी मजदूरी का पैसा इन बच्चों पर बिना किसी प्रतिफल की उम्मीद में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी,भावनात्मक एवं बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए लगाया होता है कई बार तो उच्च शिक्षा के लिए माता-पिता ने कर्ज़ भी लिया होता है। अब कमाई करने वाले ए अधिकांश बच्चे सबसे पहले शहर में प्लाट लेने की सोचते हैं तथा माता पिता की ओर कम ध्यान देते हैं जो बहुत दुखदाई है ।
    फेसबुक पर माता पिता को भगवान ज्यादा वो ही लोग लिखते हैं जिनके माता-पिता दयनीय स्थिति मे होने के बाद भी उनसे आशा नही करते ।कभी वो लोग गाँव आते हैं तो अपनी जेब पैसा नही देने हेतु माता पिता से खेती , भैंस आदि की कमाई का हिसाब अपनी पत्नी के सामने लेते हैं तथा उन्हें बहुत सुनाते हैं । पत्नी भी उनमें कमी निकालकर अपना धर्म पूरा करती है और उन पर नगदी फसल उगाने और उससे पैसा कमाने का सलाह थोपती है।
    यह माजरा करीब 90% लोगों का है जो शहर मे लोगों को जन्मदिन की पार्टी देकर अपनी झूठी शान का बखान करते हैं । वो अपने पत्नी बच्चों के अलावा किसी पर एक पैसा खर्च नही करते ।
    क्या इस हालत मे समाज सुधार की ओर अग्रसर माना जा सकता है।गाँव के अधिकांश लोग इसी तरह दुःखी हैं क्योंकि उनको बच्चे की नौकरी के कारण वृद्धा पेंशन भी नही मिलती।
    मां-बाप कितने सपने सजोकर उन्हें पेट काटकर पढ़ाते हैं फिर नौकरी या तो लगती नही या लगने के बाद बेगाने होना दुःखद है।आजकल लड़को की नौकरी लगे या ना लगे घर का काम तो मरते दम बुढों को ही करना पडता है।बच्चों को पढ़ाने का मां -बाप को यही पुरस्कार है ।
    जो लोग शोसल मीडिया पर बड़ी बडी बातें करते हैं तथा लोगों का आदर्श बने हुए हैं तथा बड़े पदों पर आशीन हैं उनमें से अनेक भी अपने रिशतेदारों , माता पिता के प्रति निष्ठुर भाव रखते हैं ।
    आजकल के अधिकांश लड़के नौकरी लगने के तुरंत बाद शादी करके दुलहन को सीधे नौकरी पर ले जाते हैं तथा सारा पढ़ाई का कर्ज , खेती का काम सब झंझट उन माता पिता के पास छोड़ जाते हैं जो अपनी मजदूरी का पैसा इन बच्चों पर बिना किसी प्रतिफल की उम्मीद में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी,भावनात्मक एवं बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए लगाया होता है कई बार तो उच्च शिक्षा के लिए माता-पिता ने कर्ज़ भी लिया होता है। अब कमाई करने वाले ए अधिकांश बच्चे सबसे पहले शहर में प्लाट लेने की सोचते हैं तथा माता पिता की ओर कम ध्यान देते हैं जो बहुत दुखदाई है । फेसबुक पर माता पिता को भगवान ज्यादा वो ही लोग लिखते हैं जिनके माता-पिता दयनीय स्थिति मे होने के बाद भी उनसे आशा नही करते ।कभी वो लोग गाँव आते हैं तो अपनी जेब पैसा नही देने हेतु माता पिता से खेती , भैंस आदि की कमाई का हिसाब अपनी पत्नी के सामने लेते हैं तथा उन्हें बहुत सुनाते हैं । पत्नी भी उनमें कमी निकालकर अपना धर्म पूरा करती है और उन पर नगदी फसल उगाने और उससे पैसा कमाने का सलाह थोपती है। यह माजरा करीब 90% लोगों का है जो शहर मे लोगों को जन्मदिन की पार्टी देकर अपनी झूठी शान का बखान करते हैं । वो अपने पत्नी बच्चों के अलावा किसी पर एक पैसा खर्च नही करते । क्या इस हालत मे समाज सुधार की ओर अग्रसर माना जा सकता है।गाँव के अधिकांश लोग इसी तरह दुःखी हैं क्योंकि उनको बच्चे की नौकरी के कारण वृद्धा पेंशन भी नही मिलती। मां-बाप कितने सपने सजोकर उन्हें पेट काटकर पढ़ाते हैं फिर नौकरी या तो लगती नही या लगने के बाद बेगाने होना दुःखद है।आजकल लड़को की नौकरी लगे या ना लगे घर का काम तो मरते दम बुढों को ही करना पडता है।बच्चों को पढ़ाने का मां -बाप को यही पुरस्कार है । जो लोग शोसल मीडिया पर बड़ी बडी बातें करते हैं तथा लोगों का आदर्श बने हुए हैं तथा बड़े पदों पर आशीन हैं उनमें से अनेक भी अपने रिशतेदारों , माता पिता के प्रति निष्ठुर भाव रखते हैं ।
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