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  • प्रिय सखी...
    माना कि अभी तन्हा हूं मैं
    सोचती हूं कि
    तेरे ख्यालों में कितनी बची हूं मैं

    न भीड़ है न तमाशा कोई
    लगता है कि
    बंद आंखों से तुझे देखती हूं मैं

    माना कि अभी चुप हूं मैं
    महसूस करो
    कानों में तुम्हारे कुछ बोलती हूं मैं

    माना कि सिरसा से गुम हो चुकी हूं मैं
    नारनौंद की गलियों में
    सिर्फ़ तुम्हें ही तो ढ़ूंढ़ती हूं मैं

    चले जाना ही जाना नहीं होता है
    जानती हो न तुम
    ख़्वाबों में तुम तक लौटती हूं मैं ।
    "मोरनी"
    प्रिय सखी... माना कि अभी तन्हा हूं मैं सोचती हूं कि तेरे ख्यालों में कितनी बची हूं मैं न भीड़ है न तमाशा कोई लगता है कि बंद आंखों से तुझे देखती हूं मैं माना कि अभी चुप हूं मैं महसूस करो कानों में तुम्हारे कुछ बोलती हूं मैं माना कि सिरसा से गुम हो चुकी हूं मैं नारनौंद की गलियों में सिर्फ़ तुम्हें ही तो ढ़ूंढ़ती हूं मैं चले जाना ही जाना नहीं होता है जानती हो न तुम ख़्वाबों में तुम तक लौटती हूं मैं । "मोरनी"
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  • घर लौटना अब घर को सुहाता नहीं है
    कोई भी रास्ता अब रास आता नहीं है

    मैं ये दर्द कहूं भी तो किससे कहूं
    मरना मुहाल जिया भी तो जाता नहीं है

    न उम्मीद बची कोई न ही हिम्मत शेष है
    यह नेह का नाता तोड़ा क्यूं जाता नहीं है

    कब तक साथ निभाएगी तू भी आख़िर
    अब तेरा दुःख मुझसे देखा जाता नहीं है

    बेरहम है वक्त और जालिम है ज़माना
    खुदा भी राह कोई क्यों दिखाता नहीं है
    "मोरनी"
    घर लौटना अब घर को सुहाता नहीं है कोई भी रास्ता अब रास आता नहीं है मैं ये दर्द कहूं भी तो किससे कहूं मरना मुहाल जिया भी तो जाता नहीं है न उम्मीद बची कोई न ही हिम्मत शेष है यह नेह का नाता तोड़ा क्यूं जाता नहीं है कब तक साथ निभाएगी तू भी आख़िर अब तेरा दुःख मुझसे देखा जाता नहीं है बेरहम है वक्त और जालिम है ज़माना खुदा भी राह कोई क्यों दिखाता नहीं है "मोरनी"
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  • किसे हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है
    किसे हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है
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  • आँसू की बिसात ही क्या
    जब जी चाहा निकल गया
    इसने तब तब छोड़ा साथ
    जब हृदय दर्द विकल रहा
    आँखों से संबध भी इसका
    देखो कितना विफल रहा
    यह कायर क्या जीना जाने
    खुदकुशी में ही सफल रहा
    इसका करे क्या भरोसा कोई
    यह खुशियों में भी छलक गया
    फ़रेबी आँसू यह बंजारा सा
    हर ढाढस पा कर बहक गया
    आँसू खारा पानी या मोती
    सोचो इसका मोल है क्या
    कीमत इसकी आंक सके
    दुनिया की औकात है क्या
    भीतर गिरता जलाता हिय को
    यह भी भला कोई बात है क्या...
    "मोरनी"
    आँसू की बिसात ही क्या जब जी चाहा निकल गया इसने तब तब छोड़ा साथ जब हृदय दर्द विकल रहा आँखों से संबध भी इसका देखो कितना विफल रहा यह कायर क्या जीना जाने खुदकुशी में ही सफल रहा इसका करे क्या भरोसा कोई यह खुशियों में भी छलक गया फ़रेबी आँसू यह बंजारा सा हर ढाढस पा कर बहक गया आँसू खारा पानी या मोती सोचो इसका मोल है क्या कीमत इसकी आंक सके दुनिया की औकात है क्या भीतर गिरता जलाता हिय को यह भी भला कोई बात है क्या... "मोरनी"
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