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सफलता चाहतें हैं तो पहले ख़ुद का 100% दें

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आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत बचपन में सुनी एक प्यारी सी कहानी से करते हैं। अमीरपुर में राजू नाम का एक बहुत ही आलसी और मक्कार युवा रहता था। वैसे तो वह हमेशा अमीर बनने के सपने देखा करता था, लेकिन अपनी बिगड़ी हुई जीवनशैली के कारण कई बार भीख माँग कर काम चलाया करता था।

 
 
 

एक दिन भिक्षा के दौरान उसे किसी ने एक घड़ा भरके दूध दिया, जो उसकी कल्पना से परे था। उसने दूध से भरे घड़े को बड़ी प्रसन्नता से उठाया और घर की ओर चल दिया। रास्ते में राजू सोचने लगा अगर मैं इस दूध का दही, दही का मक्खन और मक्खन का घी बनाकर बाज़ार में बेच दूँ तो मैं बहुत सारे पैसे कमा सकता हूँ। इतना ही नहीं अगर मैं कमाये हुए पैसों से यही कार्य बार-बार करूँ तो निश्चित तौर पर मैं भी धनी व्यक्ति बन जाऊँगा।

 
 
 

इन्हीं विचारों के साथ राजू ने घर पहुँच कर सबसे पहले दूध को उबाला और उसमें थोड़ा सा दही डाल कर जमने के लिये रखा और आलस के कारण वहीं पर आराम करने के लिये लेट गया। लेटे-लेटे ही राजू एक बार फिर ख़याली पुलाव पकाने लगा और सोचने लगा कि धनी बनने के बाद मैं एक बहुत बड़ी डेयरी खोलूँगा और फिर एक अदभुत ही सुन्दर लड़की के साथ शादी करूँगा। फिर कुछ सालों में मेरे घर एक नया मेहमान आयेगा याने मैं पिता बन जाऊँगा। इसके पश्चात मेरे दिन बड़े अच्छे से बीतने लगेंगे।

 
 
 

इन्हीं ख़यालों के बीच उसके मन में एक परेशान करने वाला विचार भी आया। वह सोचने लगा अगर किसी दिन, कोई चोर मेरे बच्चे का अपहरण करने गया तो मैं क्या करूँगा? विचार आते ही राजू के मन में क्रोध उपजा और वह जोर से बोला, ‘साले को सबक़ सिखाने के लिये डंडे से मारूँगा। कुछ भी हो जाये छोड़ूँगा नहीं उसे।’ इतना कहते-कहते राजू ने पास में पड़ा डंडा उठाया और उसे जोर से हवा में इस तरह घुमाया जैसे वह चोर को मार रहा हो। चोर को मारने के इस नाटक में अचानक ही वह डंडा जाकर दूध के बर्तन पर लगा और सारा दूध ज़मीन पर फैल गया। बर्तन ज़मीन पर गिरने की आवाज़ से राजू का सपना टूटा। लेकिन अब उसके पास सर पकड़ने के सिवा कोई और चारा नहीं बचा था।

 
 
 

दोस्तों, कहने को यह कहानी बड़ी साधारण सी है लेकिन कहीं ना कहीं आज की पीढ़ी और हम सभी के लिये एक गहरा संदेश अपने अंदर लिये हुए है। अगर आप आज के युवा से चर्चा करेंगे तो पायेंगे कि हर कोई बहुत पैसे वाला याने अमीर बनना चाहता है लेकिन उसके लिये कुछ नया सीखने, मेहनत करने के लिये तैयार नहीं है। ऐसे लक्ष्य हक़ीक़त में दोस्तों ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपनों’ से ज़्यादा कुछ नहीं होते हैं।

 
 
 

इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें सपने नहीं देखने चाहिये या लक्ष्य नहीं बनाने चाहिये। यह दोनों चीजें ज़रूरी है, लेकिन सिर्फ़ इन्हीं दोनों के होने से कुछ नहीं होगा। उसके लिये तो हमें योजनाबद्ध तरीक़े से, सही दिशा में मेहनत भी करना होगी। याद रखियेगा, इस ज़िंदगी में कुछ भी आसानी से नहीं मिलता है। अगर आप वाक़ई अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले सपने देखें, ख़ुद के अच्छे जीवन की कल्पना करें और उसके बाद उन सपनों या अच्छे जीवन की कल्पना को हक़ीक़त में बदलने के लिये योजना बनायें और फिर कड़ी मेहनत करना प्रारम्भ करें। याद रखियेगा, मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।

 
 
 

लेकिन यह जानने और समझने के बाद भी आप केवल सपने देखना ही पसंद कर रहे हैं, उन्हें साकार करने के लिये योजनाबद्ध तरीक़े से कड़ी मेहनत नहीं कर रहे हैं तो हक़ीक़त में आप सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुद को धोखा दे रहे हैं। इसलिए साथियों, क़िस्मत या किसी और को दोष देने, उनकी कमियाँ निकालने के पहले खुद का 100% देना शुरू कीजिए, फिर देखियेगा सफलता खुद आपके कदम चूमना शुरू कर देगी।

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