दोस्तों, टीनएज याने किशोरावस्था, एक ऐसा समय होता है जो ना सिर्फ़ बच्चों अपितु उनके माता-पिता के लिये भी काफ़ी चुनौती भरा यानी संघर्षपूर्ण समय होता है। यह ऐसी अवस्था होती है, जिसमें जरा सी चूक होने पर सामान्य बातचीत भी विवाद में बदल जाती है। इसकी मुख्य वजह टॉडलर बच्चों के समान ही टीनएज बच्चों में भी तेज गति से बदलाव याने डेवलपमेंट होना है। इसलिये मैं टीनएज बच्‍चों की पैरेंटिंग को टॉडलर बच्चों को संभालने के समान ही मानता हूँ।

 
 
 

असल में टीनएज उम्र में बच्चा हार्मोनल याने शारीरिक एवं मानसिक बदलाव से गुजरता है। इसी बदलाव के कारण बच्चे में व्यवहारिक परिवर्तन देखा जाता है। जैसे चिड़चिड़ापन, गुस्‍सैल स्वभाव और अनुशासनहीनता। आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि बच्चों की सोच में बदलाव को ही मैं यहाँ मानसिक बदलाव के रूप में मान रहा हूँ। जैसे वह स्वयं को समझदार और बड़ा मानने लगता है। लेकिन हम अभी भी उसके साथ बच्चों के समान ही व्यवहार करते हैं। इसीलिये टीनएज उम्र में उन्हें यह भी लग सकता है कि आप उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं।

 
 
 

जी हाँ साथियों, अक्सर हम भूल जाते हैं कि अब उस बच्चे की लंबाई हमारे बराबर ५-६ फ़ीट की हो गई है और अब वह ख़ुद को सक्षम समझने लगा है। इसीलिये पुराने जमाने में कहा जाता था, कि ‘बेटे के पैर में जब बाप की चप्पल जाये, तो समझ लो वह बड़ा हो गया है।’ अर्थात् अब वह अपनी सारी ज़रूरतों के लिये आप पर निर्भर नहीं है। अब वह यह नहीं चाहता है कि आप उसे जज करें। इस समय वह आपसे उम्मीद करता है कि आप उसे अच्छे से सुन लें, उसका समर्थन करें, उसके साथ दोस्तों समान व्यवहार करें, मस्ती करें। याने इस समय हमें उसे महसूस कराना होगा कि हम अब एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। इस स्थिति को मापने का सबसे आसान तरीक़ा यह देखना है कि बच्चा आपसे अपने अनुभवों को साझा करने में सहज है या नहीं।

 
 
 

इसके लिये सर्वप्रथम यह स्वीकारें कि वे जल्द ही वयस्क होने जा रहे हैं और आने वाले कुछ सालों में उन्हें आपका हाथ पकड़ने की आवश्यकता नहीं होगी। इसलिये सबसे पहले शांत रहना शुरू करें और उनके कार्यों में अपनी दख़लअंदाज़ी की लिमिट तय कर लें। बात-बात पर बच्चों की तरह गुस्‍सा दिखाना, आपके रिश्ते को ग़लत दिशा में ले जा सकता है। उदाहरण के लिये बच्चा अपना कमरा गन्दा रखता है, अपने बालों को रंगना चाहता है, कान छिदवाना चाहता है या फिर टैटू बनवाना चाहता है और आप इन चारों बातों से ही परेशान हैं। अब अगर आप उसकी हर छोटी-मोटी बातों को नियंत्रित करने का प्रयास करेंगे, तो बच्चा अपनी स्वतंत्रता पर अधिक जोर देने लगेगा। ऐसे में आपको बुद्धिमानी से चुनना पड़ेगा कि किन बातों के लिये आपको उसे रोकना है और किन बातों को नज़रंदाज़ करना है। अर्थात् वयस्क के रूप में आपको अपने निर्णय बुद्धिमानी से लेना होंगे और उनपर नाराज़ होने के स्थान पर उन्हें अपने निर्णय लेना सिखाना होगा।

 
 
 

इसके साथ ही आपको उन्हें विभिन्न प्रकार की असफलताओं को डील करना, कमबैक करना, अपने कार्य ख़ुद करना याने आत्मनिर्भर और ज़िम्मेदार बनना सिखाना होगा। याद रखियेगा, निर्णय लेना और आलोचनात्मक सोच रखना समझदार और ज़िम्मेदार बनने के दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं। इसके बिना हम अपने किशोर बच्चे को ख़ुद के लिये और समाज के लिये ज़िम्मेदार बनना नहीं सिखा पायेंगे।

 
 
 

लेकिन उपरोक्त बातों को सिखाते समय आपको एक महत्वपूर्ण विषय के बारे में अच्छे से विचार करना होगा। यह सही है कि हमें अपने जीवन को आसान बनाने के लिए टेक्‍नोलॉजी की आवश्यकता है। लेकिन टीनेज या किशोर बच्चे इसका ग़लत उपयोग कर भटक सकते हैं; आपको परेशान कर सकते हैं। उदाहरण के लिये स्मार्टफोन से आप उन्हें ट्रैक कर सकते हैं लेकिन यही स्मार्टफ़ोन उन्हें भटका सकता है। याद रखियेगा, फोन, लैपटॉप या टैबलेट से किशोरों का ध्यान भटकता है। जहां बच्चों को इन गैजेट्स का उपयोग सिखाना है वहीं इसकी लत लगने से बचाना भी है। इसलिये बच्‍चों के लिए गैजेट्स के इस्‍तेमाल को लेकर एक लिमिट बनायें।

 
 
 

वैसे दोस्तों, बच्चों का अच्छे से लालन-पालन करना अपने आप में ही एक अनूठा, अनुपम और एक अलग ही एहसास देने वाला कार्य है। जिसे किसी भी नियमों में सीधे-सीधे बांध पाना लगभग असंभव ही है। लेकिन फिर भी मैं आशा करता हूँ कि आप इस डायनैमिक कार्य को उपरोक्त सुझावों की सहायता से ख़ुद के लिये सुखद और टीनेज बच्चे के लिये लाभप्रद बना पायेंगे। दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप टीनेज बच्चों की अच्छे से परवरिश कर उन्हें भविष्य का अच्छा नागरिक बनाने के साथ-साथ अपने घर के माहौल को ख़ुशनुमा रख पायेंगे।