दोस्तों, असल में हमारा जीवन उतना उलझा, मुश्किल या चुनौतियों से भरा हुआ नहीं है जितना हमें लगता है। अगर आप गम्भीरता पूर्वक इस विषय में गहराई से सोचेंगे तो पायेंगे कि हमारे जीवन की ज़्यादातर उलझनें, परेशानियाँ, मुश्किलें या चुनौतियाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे चंचल मन या दिमाग़ की पैदा की हुई हैं। अपनी बात को मैं आपको एक बहुत ही प्यारी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।

 
 
 

बात कई साल पुरानी है, दो युवा रामू और श्यामू बुरी तरह चोट ग्रस्त हाल में एक दूसरे की शिकायत करने पुलिस थाने पहुँचे। वहाँ मौजूद दरोग़ा दोनों के सर पर पट्टी और हाथ-पैर में प्लास्टर बँधा देख थोड़ा सा चौंके और बोला, ‘भाई, जरा विस्तार से बताओ तुम दोनों की यह हालात कैसे हो गई।’ दरोग़ा के इतना पूछते ही दोनों युवा एक-दूसरे का मुँह देखने लगे, मानो, एक दूसरे से कह रहे हों कि ‘तू बता… तू बता…’ असल में घटना ही कुछ ऐसी थी।

 
 
 

काफ़ी देर तक जब दोनों ही कुछ नहीं बोले तो दरोग़ा ने थोड़ा नाराज़ होते हुए इन दोनों के साथ आये तीसरे युवक की ओर देखते हुए कहा, ‘चल तू ही जरा विस्तार से बता हुआ क्या है?’ उस युवा ने दोनों की ओर देखा और बोला, ‘साहब, किस मुँह से बतायेंगे ये दोनों? हाथापाई हो गई है इनमें आज; लट्ठ चल गये और तो और काफ़ी खून भी बह गया।’ दरोग़ा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘पर क्यों? यह भी तो बता।’ वह युवा बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘मालिक, हक़ीक़त में तो यह दोनों दोस्त हैं, बस आज बिना किसी बात के आपस में भिड़ गये और यह हालत बना ली। घटना आज सुबह उस वक़्त की है, जब यह दोनों रोज़ की तरह झील के किनारे बैठे-बैठ मछलियों को दाना डाल रहे थे। अचानक ही रामू ने श्यामू से कहा, ‘मित्र, मैंने एक भैंस ख़रीदने का निर्णय लिया है।’ इतना सुनते ही श्यामू तैश में गया और बोला, ‘नहीं-नहीं, तू भैंस लेने का विचार बिलकुल त्याग दे क्योंकि मैंने खेत ख़रीदने का मन बना लिया है।’ बात सुन श्यामू थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, ‘मेरे भैंस ख़रीदने से तेरी योजना पर क्या फ़र्क़ पड़ता है?’ इतना सुनते ही रामू को ग़ुस्सा गया और वह चिढ़ते हुए बोला, ‘देख, अगर तेरी भैंस मेरे खेत में घुस गई तो अपनी ज़िंदगी भर की दोस्ती एक मिनिट में ख़राब हो जायेगी। मैं इसे बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा। तू जानता ही है मैं क्रोधी आदमी हूँ। अगर उसने मेरी फ़सल को नुक़सान पहुँचाया तो तेरी भैंस और तुझे दोनों को ही ठिकाने लगा दूँगा।’ इतना कहकर वह एक पल रुका फिर बोला, ‘माना अपनी दोस्ती पुरानी है, छोटी सी बात पर इसे क्यों दांव पर लगाना, कुछ और ख़रीद ले जिसमें कोई झंझट हो।’

 
 
 

साहब पर रामू भी अड़ियल था, वह भी ज़िद पर अड़ गया और बोला, ‘मैं ख़रीदूँगा तो भैंस ही, मैंने तय कर लिया है। तू कौन होता है मुझे रोकने वाला? तुझे अगर डर है, तो तू खेत मत ख़रीद और हाँ याद रखना भैंस तो भैंस है। उस क्या भरोसा, कभी तेरे खेत में घुस भी जाये और फ़सल को नुक़सान भी पहुँचा दे। अब कोई चौबीस घंटे हम भैंस के पीछे ही तो घूमते नहीं रहेंगे और हाँ याद रखना मेरी भैंस पर हाथ उठाने का सोचना भी मत। तू भी जानता है मेरा ग़ुस्सा कैसा है। भैंस-वेंस एक तरफ़ रह जायेगी, आग लगा दूँगा तेरे खेत में। हड्डी-पसली तोड़ दूँगा तेरी। पुरानी दोस्ती में नाहक ही झंझट क्यों मोल ले रहा है।’

 
 
 

साहब इतना सुनते ही रामू का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और उसने अपनी उँगली से ज़मीन पर एक चोकोर डब्बा बनाते हुए रामू से कहा, ‘ले ये बन गया मेरा खेत। अब दम हो किसी में तो इसमें घुस कर देख ले।’ इतना सुनते ही साहब श्यामू ने इसके डब्बे में अपनी उँगली से एक लाइन खेंच दी और बोला, ‘ले घुस गई मेरी भैंस तेरे खेत में, अब जो बने कर ले।’ इतना कहकर उस युवा ने एक ठंडी साँस ली और बोला, ‘दरोग़ा साहब बाक़ी हाल तो अब आपके सामने है ही।’

 
 
 

दोस्तों, इस कहानी या किससे का सबसे मज़ेदार पहलू तो यह है कि अभी तक ना तो भैंस ख़रीदी गई थी और ना ही खेत। लेकिन उनके तथाकथित मालिक रामू और श्यामू दोनों प्रतीकात्मक चीजों या अपने दिमाग़ में उपजी बातों के लिये ही झगड़ लिये और बात खून-ख़राबे, अस्पताल और थाने तक पहुँच गई। याने असली में सिर खुल गये, हाथ पैर टूट गये और शायद भैंस अथवा खेत ख़रीदने के लिये बचाये गये पैसे भी खर्च हो गये।

 
 
 

असल ज़िंदगी में दोस्तों, अक्सर हम ऐसे ही मन में उपजी बातों के कारण समस्यों में उलझ जाते हैं। एक आँकड़ा बताता है मन में सोची गई ९० प्रतिशत नकारात्मक बातें हमारे जीवन में कभी घटती ही नहीं हैं। तो आइये साथियों, आज नहीं, अभी से ही हम यह निर्णय लेते हैं कि अनावश्यक रूप से नकारात्मक सोच की वजह से ज़बरदस्ती परेशानियों में नहीं उलझेंगे और अपना जीवन सकारात्मक रूप से जियें